क्या आपकी ‘जीवन रूपांतरण की इच्छा’ बहुत सतही तो नहीं है?
क्या आपकी ‘जीवन रूपांतरण की इच्छा’ बहुत सतही तो नहीं है?
एक लड़का जो बचपन में हमेशा सर्वसामान्य छात्र रहा, पढ़ाई में ज्यादा होशियार भी नहीं था, स्कूल में एक बार फेल भी हुआ था, जैसे-तैसे उसने अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी की, मुंबई में लॉयर बनने की पुरजोर कोशिश भी की, पर हाथ में निराशा के सिवाय कुछ भी नहीं लगा । साउथ अफ्रिका में उसकी थोड़ी बहुत पहचान थी और उस वक्त साउथ अफ्रिका में रहनेवाले भारतीयों को एक लॉयर की जरूरत थी और भारत में भी उसके लिए ज्यादा कुछ बचा नहीं था । तो यह महाशय साउथ अफ्रिका चले गये । फिर एक दिन साउथ अफ्रिका में ट्रेन से सफ़र कर रहे थे, रंग से काले थे, तो टी.सी. ने उन्हें प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठने से मना किया, वे भी आपनी ज़िद पर अड़े रहे कि मेंरे पास मेरे पास प्रथम श्रेणी का टिकट है, तो मैं प्रथम श्रेणी में ही बैठुंगा, विवाद के चलते उस टी.सी. ने अगले स्टेशन पर उन महाशय को उनके सामान के साथ बाहर फेंक दिया ।
उस वक्त कुछ बदला । जिंदगी ने करवट ली । सामान्य से असामान्य की तरफ यात्रा शुरू हुई । जिंदगी ने एक नया एवं अलग रास्ता इक्तीयार कर लिया और हम सभी जानते हैं कि आगे जाकर यह सामान्य लॉयर ‘महात्मा गांधी’ बने । उस वक्त उनके भीतर कुछ तो बदला । पर क्या? किसप्रकार से? पलभर में जिंदगी बदली । पर कैसे?
१३ जुलाई १९७८ अमरिका के अखबारों में एक खबर छपी । यह खबर इतनी चौकानेवाली थी कि कारोबारी जगत का हर एक इंन्सान उसी खबर के बारे में बात कर रहा था । यह खबर जिस कंपनी के बारे में थी, उस कंपनी में तो मानो जैसे भूचाल आ गया । कंपनी के कर्मचारियों को उस खबर पर भरोसा करना असंभव था । खबर यह थी कि ली आयाकोका को फोर्ड के सीईओ पद से हटाया गया है । पर क्यों? अमरिका के सबसे ताकदवर एवं अमीर सीईओ को अपने पद से क्यों हटाया गया? यहीं सवाल ली आयाकोका ने हेन्री फोर्ड, जो कि फोर्ड कंपनी के मालिक थे, उनसे पूछा, “आप मुझे कंपनी से क्यों निकाल रहे हो?” फोर्ड ने जवाब दिया, “तुम मुझे पसंद नहीं हो ।” यह सुनने के बाद ली को बहुत दुःख हुआ । जिस कंपनी का प्रॉफिट बढ़ाने के लिए उन्होंने दिन रात एक की थी, अपने पसीने से उन्होंने कंपनी को सीचा था, उस कंपनी का मालिक अचानक एक दिन उनसे कहता है कि तुम मुझे पसंद नहीं हो, इसलिए तुम्हें निकाला जा रहा है ! आप भी सोच सकते हैं कि क्या बीती होगी उस इन्सान पर, जिसने ताउम्र कंपनी के विकास और विस्तार के अलावा कुछ भी नहीं सोचा था?
उस वक्त ली आयाकोका की उम्र थी ५८ साल । आयाकोका अपने जिंदगी के सबसे बूरे दौर से गुजर रहे थे । किसी समय कारोबारी जगत का सबसे ताकदवर इंसान आज घर में खाली बैठने के लिए मजबूर था । तकलीफ भरे दिन, एक के बाद एक कट रहे थे । आगे का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था । जिंदगी में घना अंधेरा छाया हुआ था । ऐसे ही एक साल निकल गया । उस वक्त अमरिका में एक बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी थी जिसका दिवाला निकला था, वह बंद होने की कगार पर पहुँच गयी थी । कंपनी का नाम था क्रिझलर कॉर्पोरेशनस् । क्रिझलर कॉर्पोरेशनस् के बोर्ड ऑफ डिरेक्टर्स आयाकोका से मिले, कंपनी के नेतृत्व की धुरा संभालने का अनुरोध आयाकोका से किया गया और इस तरह आयाकोका क्रिझलर कॉर्पोरेशनस् के नए सीईओ बन गए । सिर्फ दो सालों में चमत्कार हुआ । आयाकोका के नेतृत्व में कंपनी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए २.१ बिलीयन डॉलर की कमाई की थी । अचानक से एक साल तक जो आयाकोका गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर थे, वह अमरिका के नेशनल सेलिब्रिटी बन गये । पोर्टफोलिओ मॅगझीन ने अमरिका के सबसे सफल और ताकदवर पहले पचास सीईओज् की एक लिस्ट बनाई है, जिस में आयाकोका को १८ वां स्थान दिया गया है । यह परिवर्तन कैसे आया? एक साल की निराशा, आशा में किस प्रकार से परावर्तित हुई? एक नए और सुनहरे भविष्य का निर्माण आयाकोका किसप्रकार कर पाए? ढलती उम्र मैं एक नई ताकद किस प्रकार से पैदा हुई? वह फिर से लढ़ने के लिए किस प्रकार खड़े हुए? शायद उनके भीतर कुछ तो बदला? पर क्या? किसप्रकार से? पर जो कुछ हुआ वह पलभर में हुआ । पर कैसे?
जब मैं छोटा था, तब हमारे पड़ोस में एक फॅमिली रहा करती थी । पति-पत्नी और दो बच्चें । पति हर रोज़ शाम घर आने के बाद छोटी-छोटी बातों पर पत्नी से झगड़ा शुरू कर देता था । हर रोज़ झगड़ा और झगड़े का अंत पति द्वारा पत्नी को पीटने में होता था । हर रोज़ किसी ना किसी कारणवश झगड़े के बाद वह पति अपनी पत्नी को पीटता था । वह रोती थी, चिल्लाती थी, दया की भीख मांगती थी, पर जब तक उसका गुस्सा ठंडा नहीं होता था, तब तक वह उसे पीटता था । कभी खरोंच आती, कभी शरीर पर सुजन हुआ करती, कभी सिर फुटता, तो कभी हाथ टुटता । यह सब कई सालों तक चला । बाद में वह फॅमिली घर छोड़कर चली गयी और आगे के दस साल हम कभी नहीं मिले ।
एक दिन मैं पूना आया हुआ था, कुछ काम से बैंक जाना हुआ । दोपहर का वक़्त होने से बैंक में ज्यादा भीड़ न थी । मैं बैंक के अफसर से बात कर रहा था कि अचानक कॅश काउंटर संभालने वाली एक महिला ने मुझे नाम से पुकारा, मैंने कुतूहलवश अपनी नजर उनकी ओर घुमाई, चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा । थोड़ी देर सोचने के बाद याद आया, वह पड़ोसवाली फॅमिली । अपना काम पूरा कर में उन महोदया से मिलने गया । बातें शुरू हुई, मैंने उनसे पूछा, “यहाँ कैसे?” उन्होंने कहा, “वह पुराना घर छोड़ने के दो साल बाद मैंने अपने पति को तलाक दे दिया, बैंक की परीक्षा पास की और पिछले सात साल से पूना में इसी बैंक में जॉब कर रही हूँ, लड़का इंजिनीयरींग की पढ़ाई रहा है और लड़की की शादी हो चुकी है, वह अमरिका में है ।
मैं तो उसकी कहानी सुनकर दंग रह गया । दस सालों तक वह महिला अपने पति के अत्याचार सहन करती रही और एक दिन अचानक भीतर कुछ बदला । पलभर में निर्णय हुआ, जिंदगी में आगे बढ़ने का । कुछ तो बदला? पर क्या? किसप्रकार से? पर जो कुछ हुआ, वह पलभर में हुआ । पर कैसे?
जब भी बदलाहट होती है, वह एक पल में होती है । वह पल हमारे भविष्य का निर्माण करता है । जिंदगी जब भी बदलती है, एक पल में बदलती है । पर वह पल कब आता है? कैसे आता है? क्यों आता है? कहाँ से आता है?
इन्हीं कुछ सवालों पर थोड़ा विस्तार पूर्वक सोचते हैं, क्योंकि जीवन के मूलभूत परिवर्तन बहुत बार हमारे अनजाने घटित होते हैं । पर क्या हम इस जीवन परिवर्तन की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को समझ सकते हैं? एन.एल.पी. हमें इसका उत्तर देता है ।
जब भी जीवन में कुछ बदलता है, तो दिमाग में चार बातें घटना जरूरी होता है ।
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सबसे पहले जो कुछ भी आपको बदलना है, उसके बारे में सटीक जानकारी होनी चाहिए । अगर मुझे यह पता ही नहीं है कि मुझे बदलना क्या है, तो बदलाहट नहीं होगी । बहुत बार जिंदगी नींद में कट जाती है । हमें अपनी नकारात्मक आदतों और भावनाओं की इतनी आदत हो जाती है कि इनकी वजह से जिंदगी खराब हो रही है, यह भी देखना हम बंद कर देते हैं । अतः ‘क्या बदलना है?’ इसकी सही जानकारी होना आवश्यक है । इसी लिए सबसे पहले जागरूकता, अवेरनेस होना चाहिए । बहुत बार बदलाहट का भ्रम होता है, साफ-साफ कुछ भी नहीं होता । बहुत लोग आम तौर पर यह कहते हैं कि जिंदगी में कुछ तो मिसिंग है । पर इससे क्या कोई बदलाहट हो सकती है? बिलकुल नहीं । आपको आपके जीवन में क्या बदलना है? क्या आपको उसकी ‘स्पष्ट और सटिक’ जानकारी है?
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दूसरी बात, जिंदगी में कुछ भी बदलने के लिए ‘यह किसी भी हालत में बदलना ही है ।’ यह मन:स्थिति होनी चाहिए । कुनकुना प्रयास कुछ भी नहीं बदल पाता । पानी सिर्फ १०० डिग्री पर ही भांप बनता है । बदलाहट तभी होती है, जब हम उस बिंदू तक पहुँचते हैं, जहाँ से बिना बदले पीछे नहीं हटना चाहते । जब हमें भीतर से लगेगा, ‘अब बस, बहुत हो गया, इनफ इज इनफ’, तभी बदलाहट होगी ।‘यह किसी भी हालत में बदलना ही है’ इस मन:स्थिति तक आप पहुँचे हो?
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तिसरी बात, जो भी बदलाहट करनी है वह मुझे ही करनी है, मैं बदलने की ज़िम्मेदारी लेता हूँ, यह भाव होना चाहिए । जहाँ पर भी बदलाहट विफल जाती है, वहाँ पर ज़िम्मेदारी का भाव नहीं होता । लोग बदलते नहीं हैं, क्योंकि हर बार वे अपनी ज़िम्मेदारी दूसरों पर ढकेल देते हैं । वे हर बार न बदल पाने की वजह देते हैं । इसी लिए तर्क मत देना, बदलने की ज़िम्मेदारी लेना जरूरी होता है । क्या आपने पूरी तरह से बदलने की ज़िम्मेदारी उठायी है?
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आखरी बात, मैं बदल सकता हूँ, मैं कर सकता हूँ, मैं बन सकता हूँ, मैं बना सकता हूँ, इस पर विश्वास स्वयं में जगाना होगा । बहुत लोग समस्या में इतना उलझ जाते हैं और इतने समय तक उलझ जाते हैं कि धीरे-धीरे मैं यह बदल सकता हूँ, यह भाव ही खोने लगता है । वे उस समस्या, तकलिफ, दुःख के साथ तालमेल बिठा लेते हैं । मैं बदलाहट ला सकता हूँ, यह बात दिमाग में होना बहुत जरूरी है । क्या ‘मैं बदल सकता हूँ ।’ इस विचार पर आपका विश्वास है?
अब ऊपर दिए तीन उदाहरण देखें, उनके बारें में थोड़ा सोचे । जाने-अनजाने जब भी ये चार बातें दिमाग में घटती हैं, तो पल भर में बदलाहट होती है । अगर आपको जीवन रूपांतरीत करना है, या जीवन का कोई हिस्सा बदलना है, तो क्या ऊपर बताई गई चार बातें आपके दिमाग में घट रही है? क्या जानते हुए हम इन चार बातों को अपने दिमाग में घटने दे सकते हैं?
चार सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न फिर से दोहराता हूँ ।
01. आपको आपके जीवन में क्या बदलना है? क्या आपको उसकी ‘स्पष्ट और सटीक’ जानकारी है?
02. ‘यह किसी भी हालत में बदलना ही है ।’ इस मन:स्थिति तक आप पहुँचे हो?
03. क्या आपने पूरी तरह से बदलने की ज़िम्मेदारी उठाई है?
04. ‘मैं बदल सकता हूँ ।’ क्या इस पर आपका विश्वास है?
फिर मिलेंगे, तब तक के लिए ......
‘एन्जॉय यूवर लाईफ एंड लिव्ह विथ पॅशन !’