जीवन रूपांतरण के लिए पांच बेहद बुनयादी और महत्वपूर्ण सवाल

पिछले कई दिनों से मेरे दिमाग में हर समय कुछ सवाल आ रहे हैं । जब भी मैं कश्मीर में हो रही हिंसा के बारे में सोचता हूँ, तब ये सवाल मुझे घेर लेते हैं । क्यों हम भारतीय पाकिस्तानियों के प्रति गुस्से से भरे होते हैं? क्यों पाकिस्तानी हम भारतीयों के प्रति नफरत से भरे होते हैं? क्यों दोनों मुल्कों के बीच कुछ भी ठीक नहीं है? क्रिकेट में भी, ‘अगर तुम वर्ल्ड कप हार जाओ तो ठीक है, पर पाकिस्तान से मत हारना ।’ क्यों पाकिस्तान को हराना वर्ल्ड कप जीतने से ज्यादा जरूरी बन जाता है?

जब भी मैं इन सवालों के बारे में सोचता हूँ, तब मेरे जहन में कुछ जवाब आते हैं, जैसे कि पाकिस्तानी हमारे दुश्मन हैं, उनका एक ही सपना है, उन्हें हिंदुस्तान जीतना है । वे हम पर वार करें, इससे पहले हमें उन्हें हराना है । जब भी मैं इन जवाबों के बारे में सोचता हूँ, तो मुझे लगता है कि ये सिर्फ जवाब नहीं हैं, ये मेरे बिलीफस् हैं, ये मेरी धारणाएँ हैं, यह मेरी सघन श्रध्दा बन चुकी है ।

 

पर ये बिलीफस् या धारणाएँ होती क्या है?

आपको शायद पता होगा कि हमारी धारणाएँ हमारे दिमाग को सीधे तौर पर आदेश देती हैं । हमारी धारणाएँ हमारे वर्तन को नियंत्रित करती हैं ।

- हमारी धारणाएँ याने हमारे ऐसे विचार जिनपर हमारा पूर्ण विश्वास होता है ।

- हमारी धारणाएँ याने हमारे ऐसे विचार जो हमारे लिए परम सत्य होती हैं, या कहे कि जिन्हें हमने परम सत्य मान लिया होता हैं ।

- हमारी धारणाएँ याने हमारे ऐसे विचार या विचारों का ऐसा ढांचा, जिनकी सत्यासत्यता पर हम कभी सवाल नहीं उठाते ।

- हमारी धारणाएँ याने हमारे ऐसे दृढ़ विचार जो कभी बदले नहीं जा सकते ।

आप अगर थोड़ा गहरा सोचे, तो आप भी यह जरूर देख पाएँगे कि हमारी धारणाएँ ही हमारा जीवन चला रही हैं, नियंत्रित कर रही हैं । यह एक ऐसी नींव है, जिसपर हमारे समग्र विचारों का ढांचा खड़ा होता है । बहुत बार हमारी धारणाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि हमें सीधे तौर पर वे दिखाई भी नहीं देती । ये धारणाएँ हमारे इतने निकटतम होती हैं कि हमसे छिप जाती है । ये धारणाएँ हमारे जीवन में इतनी घुल मिल जाती है कि हम कभी उन पर प्रश्न नहीं उठा पातें । अगर हम थोड़ा गहरा सोच पाएँ, तो हमारी जिंदगी क्या है? हमारी धारणाएँ ही तो हमारी जिंदगी है ।

आपने भी महसूस किया होगा कि हमारी पूरी जिंदगी हमारे धारणाओं के इर्द-गिर्द घूमती रहती है । जिंदगी भर हम अपनी धारणाओं को सही साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं, चाहे वे नकारात्मक ही क्यों ना हो । याद रखिये, आखिरकार हमारी धारणाएँ ही हमारे जीवन की हम ने तय की हुई भविष्यवाणी बन जाती है । जैसे ही कोई हमारी धारणाओं को धक्के देता है, तो हम मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं । पूरी दुनिया में इतनी मारकाट क्यों मची है? क्योंकि शायद सभी यह साबित करने की जद्दोजहद कर रहे हैं कि उनकी ही धारणाएँ सही हैं और बाकियों की गलत ।

सकारात्मक धारणाएँ जिदगीं में आगे बढ़ने के लिए सीढ़ी साबित होती हैं, जैसे कि मुकेश अंबानी कहते हैं, “आगे बढ़ना ही जिंदगी है, यह हमारी सब से आधारभूत धारणा है और हमें हर वक्त आगे ही बढ़ना हैं ।” और यहीं धारणा रिलायंस को आगे बढ़ाती है ।

अब सवाल यह उठता है कि हमारी ये धारणाएँ निर्मित कैसे होती हैं?

हमारी धारणाएँ निर्मित होती हैं

- हमारे अतीत के अनुभवों से,

- हमारी शिक्षा से,

- जिस तरह से हमारा पालन पोषण हुआ है उससे,

- हमारे माता पिता से,

- हमारे वातावरण से ।

हम जिंदगी भर अपनी धारणाओं को संजोते हैं, या हमारे ऊपर धारणाएँ थोपी जाती हैं । बहुत बार तो हमें यह भी समझ में नहीं आता कि कुछ ऐसी नकारात्मक धारणाएँ हैं, जो हमारे जीवन का सघन हिस्सा बन चुकी हैं ।

ये धारणाएँ काम कैसे करती हैं?

कुछ दिनों पहले मैं ‘दि हिस्टरी प्रोजेक्ट’ के बारें में पढ़ रहा था । तब मुझे लगा कि अगर कोई भी विचार लोगों को बार-बार कहा जाए, समझाया जाए, तो पहले उसका विरोध होता है, बाद में संदेह जताया जाता है, और इसके बावजूद भी अगर ज़ोरशोर से प्रचार प्रसार जारी रहा, तो धीरे-धीरे वह विचार पक्की धारणा बन जाता है । बीते ६९ साल के दौरान भारत और पाकिस्तान के साथ यहीं हुआ है । आज भी दोनों मुल्कों के बच्चें जिस इतिहास को पढ़ते हैं, वह कई बार घटनाओं का एकतरफा विवरण देता है और इससे दोनों मुल्कों के लोग एक दूसरे के प्रति पूर्वाग्रह से भर जाते हैं ।

उदाहरण के तौर पर .....

कश्मीर का मसला लेते हैं । भारत के इतिहास की किताबों में हमें यह पढ़ाया जाता है कि १९४७ में कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराज हरी सिंह भारत में शामिल होना चाहते थे, न कि पाकिस्तान में । इसके बाद पाकिस्तान के सशस्त्र घुसपैठियों ने कश्मीर पर हमला किया और तब हरी सिंह ने भारत में शामिल होने संबंधी समझौता करार पर हस्ताक्षर किए, जिसके बदले भारतीय सेना को कश्मीर की रक्षा के लिए भेजा गया ।

उधर पाकिस्तान की इतिहास की किताबों में इसके ठीक विपरीत पढ़ाया जाता है । पाकिस्तान की इतिहास की किताबें कहती हैं कि १९४७ में कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराज हरी सिंह जो कि धर्म से हिंदू थे और कश्मीर की बहुतांश प्रजा मुस्लिम थी । महाराज हरी सिंह ने मुसलमानों को कश्मीर से खदेड़ना शुरू किया, मुसलमानों पर जुल्म डहाने शुरू किये, मुसलमानों का कत्लेआम शुरू हुआ । महाराज हरी सिंह के जुल्मों से लड़ने के लिए कश्मीरियों ने कश्मीर से सटे पाकिस्तानी कबिलों के लड़ाकों की मदद ली और कश्मीर के एक बड़े हिस्सें को आझाद कराने में कामयाबी हासिल की । इसके बाद महाराज हरी सिंह ने मजबूरी में भारत का रूख किया ।

अब इसमें कौन सही और कौन गलत यह दूसरी बात है । मैं कोई इतिहासकार या इतिहासवेत्ता नहीं हूँ, तो मुझे भी नहीं पता कि किसका संस्करण सच है और किसका झूठ । पर समझनेवाली बात यह है कि किसप्रकार से हमारे ऊपर धारणाएँ थोपी जाती हैं । धीरे-धीरे हम इन धारणाओं के गुलाम बनते हैं, ऐसी धारणाएँ जिनको हम ने नहीं चुना हैं, जो हमें सिखायी गई हैं । अब समय आ गया है कि जब हम हमारी धारणाओं को खंगोले, उन पर जरा सोच विचार करें और सबसे महत्वपूर्ण - हम हमारी धारणाएँ जागरूक होकर चुनें ।

धारणा, धारणा होती है, वह सही या गलत कैसे हो सकती है, क्योंकि मेरी कोई एक धारणा मेरे लिए सही है, तो दूसरों के लिए शायद वही धारणा गलत भी हो सकती है । दूसरों की सही धारणाएँ जिन पर वे मर मिटने के लिए राजी हैं, मेरे लिए गलत हो सकती हैं । हमारे पास सिर्फ एक ही पैमाना है, जिस पर हम धारणाओं को चुन सकते हैं और वह है कि कौनसी धारणाएँ मेरे जीवन में सकारात्मक परिणाम निर्मित कर रही हैं और कौन सी नहीं । जो सकारात्मक काम कर रही हैं, उन्हें और सघन बनाओ तथा जो नकारात्मक धारणाएँ हैं, उन्हें मिटा दो ।

चलो थोड़ा और गहरे में उतरकर इन धारणाओं को ढूंढते हैं ।

आपकी अपने काम के प्रति क्या धारणाएँ है?

अगर हमें सच में ऐसा लगता है कि काम एक बोझ है, काम करना याने मजबूरी है, काम याने सजा है, तो शायद आप कितनी भी तनख्वाह क्यों न पाते हो, आप कभी भी आनंदित होकर पूरे मन से काम नहीं कर सकते । तो जरा सोचे - आपकी सही में अपने काम के प्रति क्या धारणाएँ हैं? उन्हें लिखिए और आप शायद चौक जाएँगे कि आपके कार्यालयीन कामकाज या व्यवसाय द्वारा आप आपके जीवन में जो भी परिणाम हासिल कर रहे हो अच्छे या बुरे, वे सीधे आपकी धारणाओं से जुड़े हैं, चाहे वे धारणाएँ सकारात्मक हो या नकारात्मक । अब थोड़ा समय निकालकर नीचे दिए सवाल पर जरूर विचार करें ।

आपकी अपने काम के प्रति क्या धारणाएँ है

अब स्वयं से कुछ सवाल पुछें ।

  1. क्या मेरी ये धारणाएँ मुझे आंनद और उत्साह से काम करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं?
  2. क्या इन धारणाओं के बूते मैं काम करने के बाद आनंदीत महसूस करता हूँ?
  3. क्या ये धारणाएँ मेरी जीवन में सकारात्मक परिणाम ला सकती हैं?
  4. क्या ये धारणाएँ बदलना जरूरी हैं?
  5. अगर है तो कौनसी नई धारणाएँ मेरा वर्क लाइफ बदल सकती हैं?

शायद आपको लगेगा कि यह सब मेरे लिए नहीं है । मेरी सब धारणाएँ सकारात्मक हैं । पर थोड़ा सोचे । यह आपके ही लिए है ।

फिर मिलेंगे, तब तक के लिए ......

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Summary:
Our beliefs are the fundamentals of our personal & professional life. Belief means a thought which is undoubtedly true for us. We never cross-question that thought. Whole life is regulated by such thoughts. Belief formation happens randomly, through our upbringing, incidences, experiences & influences that we come across in our life. Most of the time life is ruined because of negative or disempowering beliefs.
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