क्या ‘फायरवॉकिंग’ से जीवन रूपांतरण होगा?

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क्या ‘फायरवॉकिंग’ से जीवन रूपांतरण होगा?

‘फायरवॉकिंग’, क्या आपने यह शब्द इससे पहले सुना है? जरा दिमाग पर जोर डाले । अगर आप को एन.एल.पी. के संदर्भ में थोड़ा बहुत पता है, अगर आपको टोनी रॉबिन्स् के बारे में पता है, तो आपने फायरवॉकिंग के बारे में जरूर सुना होगा ।

अब जरा कल्पना करें, कि आपके सामने आठ से दस फीट तक जलते हुए अंगारे बिछाए हुए हैं, जिनकी गर्मी दूर खड़े रहते हुए भी आप महसूस कर सकते हैं, वे धधकते हुए लाल तप्त अंगारे देखना भी डर का एहसास खड़ा कर रहा है और उन शोलों को देखते हुए, आप मन ही मन स्वयं से सवाल पूछ रहे हो, कि क्या आप सच में यह दस फीट का अंतर धधकते हुए अंगारों पर चलकर पार कर सकेंगे? अगर कुछ गड़बड़ हुई तो? आपको यह असंभव लगने लगता है, आप के मन में संशय है, धीरे-धीरे संशय डर में तब्दील होने लगता है ।

पर फिर आपको तैयार किया जाता है, आपको अपने जीवन के सबसे ताक़तवर मन:स्थिति में लाया जाता है, आपको कैसे चलना है? इसकी सूचनाएँ दी जाती हैं, आपसे यह कहा जाता है कि आपके मन में चल रहे संवाद को अनसुना करें और आप एक ऐसी भावदशा में प्रविष्ट हो जाते हो, जहाँ पर आप पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरे हो और आपको पूरा यकीन है, कि आप यह कर सकते हैं और फिर उन धधकते हुए अंगारों के सामने आपको खड़ा कर दिया जाता है पूरी तैयारी के साथ, तभी चारों ओर से सेंकडों लोग चिल्लाने लगते हैं, आपका हौसला बढ़ाने लगते हैं, उस कोलाहल के बीच सोचना लगभग असंभव हो जाता है । आप में अचानक ताक़त का संचार होने लगता है । लोगों के उस शोर से, उनके द्वारा आपका हौसला बढ़ाने से, आपका आत्मविश्वास दोगुना हो जाता है और पूरे जोश के साथ आप उन उत्तप्त अंगारों पर पैर रखते हुए सहजता से चलकर उस दस फिट के अंतर को पार करते हैं ।

ऐसा ही कुछ नजारा होता है, जापान के आकीबासन मंदिर के बाहर! जहाँ पर हर साल दिसंबर महिने के दूसरे रविवार को ‘फायरवॉकिंग’ के जरिए धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है । सबसे पहले मंदिर का मुख्य पुजारी धधकते हुए अंगारों की मंत्रोच्चारण के साथ पूजा करता है और फिर इसके बाद ‘फायरवॉकिंग’ रूपी पवित्र अनुष्ठान की शुरूआत होती है, जिसके साथ जोरों से मंत्रोच्चारण चलता है । भगवान का नाम लिया जाता है, लोग जोरों से प्रार्थना करते हैं और सैकड़ों लोग आग पर चलने का कारनामा आराम से कर गुजरते हैं । यह रिवाज यहाँ सालों से चला आ रहा है । स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे उनकी जिंदगी खुशहाली आती है, आनंद की वर्षा होती है, दु:खों का नाश होता है । इसका मतलब ही यह हुआ कि ‘फायरवॉकिंग’ एक बहुत पुराना कर्तब है, जो हजारों सालों से अलग-अलग देशों में धार्मिक विधी के नाम पर किया जाता है ।

पर अब कुछ सवाल खड़े होते हैं, जैसे कि

- ‘एन.एल.पी.’ और ‘फायरवॉकिंग’ का क्या संबंध है?

- क्या ‘फायरवॉकिंग’ एन.एल.पी. का हिस्सा है?

- क्यों कुछ एन.एल.पी. ट्रेनर्स एन.एल.पी. ट्रेनिंग कोर्स का करीब आधा दिन ‘फायरवॉकिंग’ सिखाने में निकाल देते हैं?

तीसरे सवाल का जावाब जानने से पूर्व पहले दो सवालों के जवाब देता हूँ । सच कहूं तो ‘एन.एल.पी.’ और ‘फायरवॉकिंग’ में कुछ भी संबंध नहीं है । और आगे जाकर कहना हो तो ‘फायरवॉकिंग’ एवं  ‘एन.एल.पी.ट्रेनिंग’ का बिल्कुल भी हिस्सा नहीं है । अब तीसरे सवाल की तरफ मुड़ते हैं, तो क्यों कुछ ट्रेनर्स एन.एल.पी. ट्रेनिंग कोर्स का करीब आधा दिन ‘फायरवॉकिंग’ सिखाने में निकाल देते हैं? इस सवाल का जवाब ढूंढने से पूर्व ‘फायरवॉकिंग’ सिखाना कहाँ से शुरू हुआ, इसे थोड़ा खंगालते हैं ।

हुआ यह कि सन 1980 के दशक में एन्थनी रॉबिन्स, जॉन ग्राइंडर के संपर्क में आए जो कि एन.एल.पी. के को-फाउंडर थें । जल्द ही दोनों पार्टनर बन गए और साथ में एन.एल.पी. ट्रेनिंग सेमिनार्स लेने लगें । सन 1983 में एन्थनी रॉबिन्स ने ‘फायरवॉकिंग’ का करतब सीखा और एन.एल.पी. ट्रेनिंग सेमिनार्स में उसका प्रयोग करने लगें । इससे हुआ यह कि  ‘फायरवॉकिंग’ कुछ ही दिनों में उनके सेमिनार की मार्केटिंग का एक बेहतरीन साधन बन गया । उन्होंने ‘फायरवॉकिंग’ के प्रयोग को बड़े जोरों शोरों से उछाला और कुछ ही दिनों में ‘फायरवॉकिंग’ एन्थनी रॉबिन्स के सेमिनार का यूएसपी बन गया और इस प्रकार से एन.एल.पी. और ‘फायरवॉकिंग’ का संबंध जुड़ने लगा । मार्केटिंग की यह कल्पना इतनी बढ़िया थी कि पूरी दुनिया में ट्रेनर्स ने इसके अलग-अलग संस्करण निर्मित किए जैसे कि, कांच के टुकड़ों पर चलना, जलता हुआ कॉटन खाना, जलते हुए रींग से छलांग लगाना, हाथों की चमड़ी को सुई से छेदना इ. । जैसे-जैसे इस प्रकार के प्रयोग ज्यादा संख्या में होने लगें, वैसे-वैसे उनके पीछे का मूल संदेश लुप्त होने लगा और धीरे-धीरे इस प्रकार के प्रयोग हँसी मजाक का केंद्र बनने लगें । कुछ ट्रेनर्स की सोच थी कि उन्हें ट्रेनिंग में कुछ तो अलग करना है और इसी सोच के कारण अलग-अलग प्रयोग होने लगें, जिनका एन.एल.पी. से कोई ताल्लुक नहीं था । ये तो सिर्फ छोटे मोटे जादू के प्रयोग जैसे हैं, जिन्हें आप कहीं पर भी सीख सकते हैं, पर मूल सवाल यह है कि क्या इससे जीवन रूपांतरण होगा?

शायद एन्थनी रॉबिन्स की सोच अलग थी । ‘फायरवॉकिंग’ के प्रयोग से रॉबिन्स यह सिखाना चाहते थें कि अगर आप चाहे, तो जिंदगी में भय को नियंत्रित कर सकते हैं, परिस्थितियाँ विपरीत होने के बावजूद भी आप एक्शन ले सकते हैं, आपकी ताक़त आपके भीतर है, आप स्वयं के मालिक है । इस संदेश के साथ-साथ ‘फायरवॉकिंग’ की और एक उपयोगिता थी । ‘फायरवॉकिंग’ एक ऐसा प्रयोग था, जिससे एन.एल.पी. के कुछ टॉपिक्स, जैसे स्टेट मॅनेजमेंट, एन्करींग, रिसोर्सफुलनेस इ. को बड़ी आसानी से सिखाया जा सकता था, पर अगर ‘फायरवॉकिंग’ के बाद भी जीवन में सपनों को पूरा करने की अगर आप हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, तो ‘फायरवॉकिंग’ महज एक प्रयोग बन कर रह जाता है । असल बात तो समझ में ही नहीं आती । इससे तो अच्छा यह होता कि आप दस दिनों तक लगातार सबमोडॅलिटीज् का अभ्यास करते और सबमोडॅलिटीज् में महारत हासिल करतें । (सबमोडॅलिटीज् एन.एल.पी. में एक ताक़तवर विधी है, जिसमें हम अपने मस्तिष्क में आनेवाले इमेजेस् , साउंडस् और फिलिंग को नियंत्रित करना एवं उन्हें बदलना सीखते हैं ।) और यहीं वह प्रभावशाली उपाय है, जिससे हम अपने डर को नियंत्रित कर सकते हैं । सबमोडॅलिटीज् के अभ्यास से, ‘जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपने भीतर छिपे डर को काबू करना जरूरी होता है ।’ यह केवल एक विचार न रहकर हमारा निजी अनुभव बन जाता है, जैसे-जैसे हम इस तकनीक में हम माहिर बनते जाते हैं, डर पर काबू करना हमारे लिए एक खेल बन जाता है । पर दुर्भाग्य से ‘फायरवॉकिंग’ का खेल इतना बड़ा हो जाता है कि प्रतिभागी यह भूल जाते हैं कि सिर्फ और सिर्फ सबमोडॅलिटीज् के अभ्यास से ही डर को, स्वयं के दिमाग को नियंत्रित किया जा सकता है और ‘फायरवॉकिंग’ उसका महज एक प्रतीक भर है और जैसे ही हम प्रतीको में अटक जाते हैं, जीवन की प्रगति रूक जाती है ।

इसी लिए याद रखना, एन.एल.पी. एक कौशल है, जिसका प्रतिदिन आप को अभ्यास करना होगा, लगातार अभ्यास करने से ही महारत हासिल होगी । अगर आपको लगता है कि कोई मसीहा, कोई गुरू, कोई मास्टर आपकी जिंदगी में आएगा और एक दिन अचानक आपकी जिदंगी बदलकर रख देगा, तो आप गलती कर रहे हैं । शायद यही हमारी सुप्त इच्छा, यही मानसिकता कि विनायास जीवन परिवर्तन हो जाए, कोई और हमारे जीवन को परिवर्तित करने का काम कर दे, हमें विकसित होने के लिए तकलीफों से गुजरना ना पड़ें, सब कुछ आराम से और मुफ्त में हो जाए, हमें गैरजरूरी चीजों में अटका देती है, परिवर्तन तो नहीं होता, पर हमें ठगने का दूसरों को मौका मिलता है और अंत में हाथ कुछ भी नहीं लगता ।

आप ही जरा सोचे, कांच के टुकड़ों पर चलना, जलता हुआ कॉटन खाना, जलते हुए रिंग से छलांग लगाना, हांथों की चमडी में सुई डालना इ. से क्या हासिल होगा ? याद रखना ज्यादातर बार ‘फायरवॉकिंग’ जैसी एक्टिव्हीटीज् सिर्फ और सिर्फ मार्केटिंग के टूल के तौर पर या लोगों को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल की जाती है, इसी लिए एन.एल.पी. का कोर्स करने से पूर्व इस बात की थोड़ी चिंता करें, कि क्या सही में एन.एल.पी. सिखाया जाएगा या एन.एल.पी. के नाम पर अलग-अलग एक्टिविटीज् के जरिए आपका मनोरंजन करके आपको एन.एल.पी. प्रैक्टिशनर का सर्टिफिकेट देकर घर भेज दिया जाएगा?

एक बात और, क्या आपको नहीं लगता कि हम में से कितने ही लोग ऐसे हैं, जो हर रोज़ कांच के टुकड़ों पर या जलते हुए अंगारों पर चलकर स्वयं का जीवन छलनी कर रहे हैं, चाहे वह जीवन की निराशा हो, दुःख हो, दर्द हो, या जीवन की तकलीफे हो । क्या जिंदगी के दु:खों की जलन कम है, जो धधकते हुए अंगारों पर चलने चल पड़े? संक्षेप में अगर आप प्रयास करें और वह भी हर रोज, तो ही चीजें बदलेगी । बेहतरीन एन.एल.पी. मास्टर ट्रेनर, अच्छी ट्रेनिंग, ट्रेनिंग से निर्मित अनुभूतियुक्त समझ, ट्रेनिंग के बाद का सपोर्ट सिर्फ और सिर्फ आपके सीखने की प्रक्रिया आसान करेंगे, पर अंत में आप ही हो जो बदलाहट ला सकते हैं, सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, जिंदगी में आगे बढ़ने का निरंतन प्रयास कर सकते हैं । इसी लिए इस बात का हमेशा स्मरण रखना, ‘आपके जीवन विकास की या जीवन रूपांतरण की सौ प्रतिशत जिम्मेदारी आप की है और आप उससे बच नहीं सकतें ।’

एन.एल.पी. ट्रेनिंग के प्रतिभागियों का अनुभव उन्हीं के शब्दों में सुनिए ।

 

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