थिन स्लाइसिंग और एन.एल.पी. (पार्ट 4)
एक संकल्पना जो शायद आपकी पूरी ‘निर्णय प्रक्रिया’ को बुनियादी रूप से बदल कर रख देगी ।
पिछले ब्लॉग के अंत में हमने कुछ सवाल देखे थे, वहीं से आगे शुरूआत करते हैं ।
- क्या इस अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस को ट्रेन किया जा सकता है, जिससे निर्णय गलत होने की संभावना को कम से कम किया जा सके?
- क्या इस ‘अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस’ की थिन स्लाइसिंग प्रक्रिया को नियंत्रित कर दिशा दी जा सकती है?
- साथ ही साथ अगर ‘थिन स्लाइसिंग’ बेहतर है, तो क्या हम स्वयं को ‘थिन स्लाइसिंग’ में ट्रेन कर सकते हैं, जैसे स्टॅट्रेजिक मैनेजमेंट में लोगों को ट्रेन किया जाता है?
आप यह जानकर चौंक जाएँगे कि यह हो सकता है । हम अपने अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस थिंकींग को ट्रेन कर सकते हैं, ‘थिन स्लाइसिंग’ को निर्देशित किया जा सकता है, इस पूरी प्रक्रिया को बहुत बेहतर बनाया जा सकता है । पर इसके लिए थोड़ा लंबा चलना पड़ेगा, थोड़ी ज्यादा मेहनत लेनी होगी, थोड़ी अलग सोच रखनी पड़ेगी, पर यकिन मानिये, यह हो सकता है । नीचे अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस की ‘थिन स्लाइसिंग’ प्रक्रिया में ट्रेन होने के लिए पाँच स्टेप्स् सुझाए गए हैं, उन पर थोड़ा गौर करें ।
स्टेप 1: स्पष्ट इच्छित परिणाम
अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस की थिन स्लाइसिंग प्रक्रिया में अगर हमें स्वयं को ट्रेन करना है, तो कौनसे क्षेत्र में हमें अपेक्षित परिणाम लाने हैं, इसकी स्पष्टता होना बेहद जरूरी है । संक्षेप में आपकी जिंदगी का कौनसा ऐसा क्षेत्र है, जहाँ पर ‘थिन स्लाइसिंग’ प्रक्रिया में आपको महारत हासिल करनी है? यह निश्चित करना पड़ेगा । उदाहरण के तौर पर मान लीजिये कि आप मार्केटिंग क्षेत्र में कार्यरत है और आप इस प्रोफेशन में तरक्की करना चाहते हैं । आमतौर पर मार्केटिंग में महारत हासिल करने के लिए अलग-अलग हुनर सीखने होते हैं, जैसे कि फेस रिडींग, ब्रॅण्डिंग, नेगोसिएशन स्किल्स् इ. । अगर आपको मार्केटिंग क्षेत्र में अपने अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस को ट्रेन करना है, जिससे आपकी ‘थिन स्लाइसिंग’ प्रक्रिया सटीक हो, तो सबसे पहले आपको यह तय करना होगा कि इन अलग-अलग स्किल्स् में से मान लो ‘फेस रिडींग’ के संदर्भ में आपको अपने अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस को ट्रेन करना है, ताकि आप अन्कॉन्शस स्तर पर ग्राहकों के चेहरे के भाव पढ़ सके और उसके मुताबिक उनसे संवाद प्रस्थापित कर सके । साथ ही साथ आपको ग्राहकों के चेहरे पढ़कर वह दिखे, जो सामान्यतः आम सेल्समन नहीं देख पाता । वस्तुतः इस दुनिया में जितने भी महानतम कम्युनिकेटर हुए हैं, वे सब लोग अन्कॉन्शस स्तर पर लोगों के चेहरे के भाव पढ़ने में सक्षम थें और यहीं वह कारण है जिसके चलते उनके संवाद की जादू इस दुनिया पर चली, इसीलिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह तय करना है, कि किस क्षेत्र में हमें हमारी अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस थिंकींग को ट्रेन करना है और यहीं हमारा प्रथम कदम है ।
स्टेप 2: कॉन्शस स्तर पर ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकठ्ठा करना ।
दूसरे चरण में हम जिस क्षेत्र में अपने अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस को ट्रेन करना है, उसके संदर्भ में जितनी हो सके, उतनी जानकारी इकठ्ठा करेंगे । जितना हो सके उतना पढ़े, वीडियोज् देखे, अगर कोई सेमिनार है, तो उसे अटेंड करें, संक्षेप में उस क्षेत्र में कॉन्शस स्तर पर मास्टर बनें । जैसे कि फेस रिडींग के संदर्भ में जितनी भी अच्छी किताबें हैं, उन्हें पढ़े, वीडियोज् देखे, नए शोधों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करें, इस क्षेत्र में जिन लोगों ने काम किया है उनसे मिले, जहाँ से संभव है वहाँ से जानकारी इकठ्ठा करें । इस विषय में स्वयं को डुबो दे ।
स्टेप 3: एलमन इंडक्शन के माध्यम से अन्कॉन्शस स्तर तक उस विषय को ले जाएँ ।
तीसरे चरण में हम इकठ्ठा की जानकारी को चेतन से अवचेतन स्तर पर ले जाने की कॉन्शस यात्रा करेंगे । यहाँ हम एलमन इंडक्शन का सहारा लेंगे । एलमन इंडक्शन हिप्नोसिस की एक ऐसी विधी है, जिसके माध्यम से बहुत ही कम समय में सरलता पूर्वक चेतन स्तर से अचेतन स्तर तक की यात्रा की जा सकती है । जैसे ही हम शरीर एवं मन पूरी तरह से रिलॅक्स करते हैं और विचारों को शांत करते हुए अचेतन स्तर तक जाते हैं, उस अवस्था में दिए गए सुझाव हमारे अन्कॉन्शस का हिस्सा बनते हैं, जैसे कि, ‘फेस रिडींग में मुझे महारत हासिल हो रही है, मैं ग्राहकों के चेहरे के हावभावों का सटीक निरीक्षण कर पा रहा हूँ, इ.।’ जब शरीर एवं मन पूरी तरह से रिलॅक्स होते हैं, चेतन मन और अचेतन मन के बीच रहा क्रिटिकल फैक्टर हट जाता है, तब इस प्रकार के सुझावों का दोहराव उन सुझावों को हमारे अचेतन मन तक ले जाता है, परिणामत: अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस विकसित होने में मदद होती है ।
किस प्रकार से एलमन इंडक्शन की मदद से हम अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस तक सुझाव पहुँचा सकते हैं, यह समझने के लिए नीचे दिया वीडियो जरूर देखें ।
एलमन इंडक्शन का इतिहास एवं उसके उपयोगिता को विस्तार से समझने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
स्टेप 4: पॅटर्न ढूंढने की आदत डाले ।
हर क्षेत्र में कुछ पॅटर्न काम करते हैं, चीजें पॅटर्न में घुमती हैं । बहुत बार हमारे पास निरीक्षण शक्ति का अभाव होता है, जिसके चलते हम पॅटर्न ढूंढने में असफल होते हैं । यहाँ तक कि आपकी जिंदगी में असफलता का भी एक पॅटर्न है । अगर आप गौर करेंगे, तो आपको पता चलेगा कि जब-जब आप असफल हुए हैं, तब-तब एक पॅटर्न काम कर रहा है । कुछ विशिष्ट चीजे हैं, जो अन्कॉन्शसली दोहराई जा रही है, जिसके चलते असफलता हाथ लग रही है । संक्षेप में अगर आपने पहले तीन चरण लगन और मेहनत के साथ पूरे किए हैं, तो चौथा चरण बहुत आसान है, क्योंकि अब तक आपका अन्कॉन्शस, पॅटर्न ढूंढने के काम में खुद ब खुद लग गया होगा । फेस रिडींग के संदर्भ में आपको धीरे-धीरे समझ में आएगा, कि ग्राहक के चेहरे पर आनेवाले कौन से भाव आपके लिए महत्वपूर्ण है? कौन से पॅटर्न काम करते हैं? जब भी सेल करने में आप कामयाब होते हैं, जब आप सेल नहीं कर पाते, तब ग्राहक के चेहरे पर कौन से भाव होते हैं? धीरे-धीरे सेल्स् में कामयाबी एवं ग्राहक के चेहरे के भाव इनके पॅटर्न आपको समझ में आने लगेंगे और फिर आपका अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस इसमें माहीर होता जाएगा ।
स्टेप 5: कौनसी ऐसी एक या दो बातें हैं, जिन पर आपको आपका पूरा ध्यान केंद्रीत करना है?
जब आप पॅटर्न ढूंढना शुरू करेंगे, तब आपको यह पता चलेगा कि यहाँ पर तो सौ चीजें काम कर रही है, पर जैसे-जैसे आपकी निरीक्षण शक्ति पैनी होती जाएगी, आप एक या दो चीजों पर आकर रुकेंगे कि जो सबसे महत्वपूर्ण हैं और यह आपके अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस थिंकींग की बुनियाद होगी । आपके मस्तिष्क को सटीकता से पता होगा कि किन बिंदुओं को आधार बनाकर थिन स्लाइसिंग करनी है और यहीं वह स्तर है, जहाँ पर पलभर में आप जो भी निर्णय लेंगे, वह एकदम सही साबित होगा । आपको ऐसी चीजें दिखाई पड़नी शुरू होगी, जो आम लोगों को दिखाई देना असंभव है । किसी निश्चित क्षेत्र में विकसित अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस की ताक़त आपको आम से खास बना सकती है । आप सही मायने में उस क्षेत्र में जादूई शक्तियों के मालिक बन सकते हैं ।
शायद यहीं वह प्रक्रिया है, जिससे गुजरते हुए सचिन तेंडूलकर क्रिकेट की दुनिया के भगवान बनें, अमिताभ बच्चन अभिनय के सम्राट बनें और स्टिव्ह जॉब्स् बिझनेस की दुनिया के जादूगार बनें । उनका अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस काम करने लगा था । यहीं वह प्रक्रिया है, जिसके चलते हम कम से कम समय में निश्चित दिशा एवं सही मार्गदर्शन के साथ अपने अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस को विकसित कर सकते हैं ।
अब आखरी और सबसे महत्वपूर्ण सवाल बचा है, क्या एन.एल.पी. और एन.एल.पी. के टुल्स अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस की थिन स्लाइसिंग प्रक्रिया को बेहतर करने में हमारी मदद कर सकते हैं?
इस सवाल के जवाब के लिए आपको अगले ब्लॉग तक रूकना होगा, तब तक के लिए ये चार ब्लॉग फिर से पढ़े । चलो तो फिर अगले ब्लॉग में मिलते हैं, तब तक के लए ‘एन्जॉय युवर लाईफ एंड लिव्ह विथ पॅशन ।’