वह क्या है जो हमें पीछे खींच रहा है?
वह क्या है जो हमें पीछे खींच रहा है?
‘‘जिंदगी में एक दुश्चक्र खड़ा होता है, हम रूक जाते हैं, थक जाते हैं, धीरे-धीरे टूटने लगते हैं, और आखिरकार हम हार मान लेते हैं । पर यह होता कैसे है? वह क्या है जो हमें पीछे खींचता है?’’
एक दिन शाम के समय शहर के पास वाली एक पहाड़ी मैं पर टहलने गया था । बारिश का मौसम था । कुछ ही देर पहले बारिश रुकी थी । सूर्यास्त होने के करीब था । पंछी अपने घरोंदों में वापस लौट रहे थें । हवा का बहना मानों लगभग थम चुका था । पहाड़ से निकलते अनेक छोटे-छोटे झरने पहाडी से अपना रास्ता बनाते हुए अपनी मस्ती में नीचे की ओर दौड़ रहे थे । चारों ओर एक शांती छायी थी । उन झरनों को देखते हुए मुझे एक गाने की कुछ पंक्तियाँ याद आने लगी । वे पंक्तियाँ कुछ ऐसी थी...
‘‘ओ दरिया मुझे नहीं जाना उस पार, आया रांझा मेरा, आया रांझा मेरा
ओ दरिया जरा रोकन दो मझधार, आया रांझा मेरा, आया रांझा मेरा ।’’
कवि इन पंक्तियों में कहता है कि वह सालों से एक ही सपना दिल में समेटे हुए है । जब से उसने होश संभाला है, सिर्फ वही सपना वह अपने दिमाग में संजोए हुए है और वह सपना है, किसी भी हालत में जल्द से जल्द दरिया के उस पार जाना । दरिया के उस पार एक दुनिया है, जिसकी बहुत बातें उसने सुन रखी है । जहाँ के बहुत से अनूठे किस्से सुने हैं, कई अफसाने सुने हैं और जब से यह सब सुना है, तब से दिल में बार-बार एक तरंग उठती है, उस पार की दुनिया देखने की । उसने सुना है कि दरिया के उस पार की दुनिया इस दुनिया से अलग है, वह दुनिया ज्यादा समृध्द है । वहाँ पर शांती है । वहाँ पर आनंद है । वहाँ पर खुशी है । इस दुनिया जैसी दौड़धूप वहाँ नहीं है । न ही निराशा है, न ही उदासी है और न ही कोई तनाव ! उस दुनिया में जाना है । इसी एक सपने को संजोए हुए वह सालों से उस पार जाने की तैयारी कर रहा है । आज तैयारी पूरी हो गयी है । अब उस पार निकलना ही था, कि इस पार उससे मिलने उसकी प्रेमिका आती है, जिससे उसे गहरा लगाव है, जिसके साथ गहन प्रेम है, जिससे एक पुराना रिश्ता है । अब मन में उलझन खड़ी होती है । अब मन में एक द्विधा मन:स्थिति में घिर जाता है । एक मन कह रहा है, चलो अब तो निकलने का समय हो गया है और एक मन कह रहा है, ‘‘जरा रूको, यह पल फिर से नहीं आनेवाला है ।’’ अब दोनों में से एक का चुनाव करना है, मन में सम्भ्रम खड़ा होता है, और आखिकार उसे यह कहना पड़ता है...
‘‘ओ दरिया मुझे नहीं जाना उस पार, आया रांझा मेरा, आया रांझा मेरा
ओ दरिया जरा रोकन दो मझधार, आया रांझा मेरा, आया रांझा मेरा ।’’
मन में गहन प्रेम था, आस्था थी, लगाव था, इसलिए रूक गए । उस पार नहीं जाने का फैसला लिया । जिस सपने के लिए सालों से तैय्यारी की थी, उसे किनारे रख दिया । चलो कोई बात नहीं, जो हुआ वह अच्छा हुआ ।
पर क्या आपको नहीं लगता कि असल जिंदगी में भी बहुत बार छोटी-छोटी चीजें हमें अपने सपनों की तरफ बढ़ने से रोक लेती हैं? हमारी ‘उस पार’ जाने की शक्ति को छीन लिया जाता है? हमारी असीम शक्तिशाली आत्मा को कैसे कैद किया जाता है? जिंदगी में एक दुश्चक्र खडा होता है । हम रूक जाते हैं । थक जाते हैं । धीरे-धीरे टूटने लगते हैं और आखिरकार हार मान लेते हैं । वह क्या है, जो हमें पीछे खींचता है? वह क्या है, जो हमें आगे बढ़ने से रोकता है? वह क्या है, जिसकी बेड़ियाँ बन जाती है?
हम उसे ‘डिसएमपॉवरींग थॉट पॅटर्न’ याने ‘असहाय महसूस करानेवाले विचारों का ढांचा’ कहते हैं । इन थॉट पॅटर्नस् का एक ऐसा जाल खड़ा होता है, जिसमें हम उलझते जाते हैं, बहुत बार हमें यह भी समझ में नहीं आता कि हम उस दुश्चक्र में घिर चूके हैं । हर दिन अनजाने ही उन ‘असहाय महसूस करानेवाले विचारों’ को दोहराने की वजह से वे इतने ताक़तवर बनते हैं, कि हमारी जिदंगी पर राज करने लगते हैं ।
मैं एक क्लाइंट के साथ काम कर रहा था । उनकी आयु लगभग पैंतालिस साल के करीब होगी । वह एक बड़ी एमएनसी में एच.आर.मॅनेजर थे । जिंदगी में सब कुछ था, पर फिर भी एक उदासीनता थी । एक खालीपन था । एक निराशा थी । सब कुछ था, पर फिर भी कुछ भी नहीं था । जिंदगी यंत्रवत हो चुकी थी । जिंदगी से चुनौतियाँ खत्म हो चुकी थी और इसके परिणाम स्वरूप जीवन से उत्साह खत्म हो गया था । ऐसा लगता था मानों जिंदगी खत्म होने का इंतजार कर रहा हो । बातों-बातों में मैंने उनसे पूछा, ‘‘क्या आपको इसीप्रकार से जीना है, या जीवन की दिशा और दशा बदलनी है?’’ उन्होंने कहा, ‘‘बेशक, मुझे यह बदलना है । यहीं नहीं, मैं पिछले 15 सालों से सोच रहा हूँ । मेरा एक सपना है । मुझे अपना एक होटल शुरू करना है । सालों से मैं सोच रहा हूँ, पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ ।’’
दोस्तों! क्या आपको नहीं लगता, कि हम में से कई सारे लोग इसी प्रकार से जिंदगी में एक जगह पर आकर अटक जाते हैं । ना आगे बढ़ पाते हैं, ना पीछे लौट पाते हैं । जिंदगी रूक जाती है । जिंदगी की वह सीडी बारबार वहीं गाना प्ले करने लगती है । तीन बाते हैं, जो मूलतः हमें पीछे खींचती हैं, जिससे जीवन में एक दुश्चक्र खडा होता है...
चलो ! थोड़ा अंदर झाँकते हैं । हमारे ‘डिसएमपॉवरींग थॉट पॅर्टनस्’ को ढूंढ़ते हैं । हमारी आदतों के बारे में सोचते हैं और हमारी नकारात्मक भावनाओं के प्रति थोड़ा सचेत होते हैं । इसके लिए कुछ सवालों के जवाब हमें ढूंढ़ने पडेंगे और ये सवाल हैं...
अगर आप इन सवालों को किसी विशेष सपने को ध्यान में रखकर पूछेंगे, तो हमें ज्यादा सटीक उत्तर मिलेंगे ।
जैसे कि किसी को कोई कम्पेटिटिव्ह एक्झाम में टॉप करना है । तो कम्पेटिटिव्ह एक्झाम को ध्यान में रखकर उपर दिए हुए तीन सवाल पूछिए । जैसे ही आपको जवाब मिलने लगेंगे, आपको समझ में आने लगेगा, कि आपको एक्झॅक्टली क्या बदलाव लाने होंगे, जिससे आपका सपना पूरा हो सके ।
याद रखना । उपर बातायी हुई तीन बातों को बदलना बहुत आसान है । इतना आसान की चुटकी बजाई और बदलाहट हो गई । पर कुछ भी बदलने से पूर्व क्या बदलना है ? इस पर थोड़ा काम करते हैं । उपर पूछे सवालों के जवाब लिखते हैं, तो चलो !
सोचना शुरू करो और लिखना भी ।
मिलते हैं अगले ब्लॉग में .....।
तब तक के लिए ‘एन्जॉय यूवर लाईफ एंड लिव्ह विथ पॅशन !’