जब मनुष्य की आत्मा जगती है......
जब मनुष्य की आत्मा जगती है......
हेलन केलर कहती है, अगर आपके जीवन में अडव्हेंचर नहीं है, तो आपकी जिंदगी, जिंदगी ही नहीं है । मानवी रूह के बारे में एक बात सच है, कि उसे भूख होती है, कुतूहल होता है, जिज्ञासा होती है, कुछ खोजने की, कुछ आविष्कृत करने की । उसे तीव्र अभिलाषा होती है कुछ समझने की, कुछ ढुंढ़ने की, कुछ जीतने की । कभी-कभी यह तृष्णा, यह जिज्ञासा मूर्खतापूर्ण होती है, कभी-कभी जिद्दी होती है, और बहुत बार अजेय होती है ।
नाथनियल फिलब्रिक लिखित ‘इन द हर्ट ऑफ द सी’ नामक उपन्यास की शुरुआत होती है एक मालवाहक जहाज के समुद्र प्रवास के साथ । १८१९ में ‘इसेक्स’ नामक यह जंगी जहाज पॅसिफिक समुंदर में व्हेल मछलियों को पकड़कर उनका तेल निकालने के उद्देश्य से चल पड़ा । उन दिनों व्हेल मछलियों को मारकर उनके शरीर से तेल निकालकर उसे अलग-अलग चीजों में इस्तेमाल किया जाता था । व्हेल मछलियों के शरीर से निकाला वह तेल बहुत ही मूल्यवान और किमती था । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसकी बहुत मांग हुआ करती थी ।
बारिश का मौसम था । समुंदर में तेज हवाएँ बह रही थी । उस अथांग समुंदर की ऊँची-ऊँची लहरों को चीरते हुए जहाज आगे बढ़ रहा था । धीरे-धीरे मौसम बद से बदतर होने लगा । जहाज में सवार मछुआरे डटे थे, किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए । एक दिन शाम के समय जोरदार बारिश शुरू हुई । जोरों से हवा बहने लगी । मछुआरे समझ गये कि यहाँ समुंदर में भीषण तुफान आने वाला है । लहरें इतनी तेज और ऊँची थी, कि जहाज में पानी भरने लगा । चारों तरफ अफरातफरी का माहौल था । कप्तान और उसके साथी मछुआरों ने जहाज को बचाने के लिए पुरजोर कोशिश की । अचानक एक विशालकाय तेज लहर जहाज से आ टकराई । जहाज बूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया । पर फिर भी कप्तान ने हार नहीं मानी । अनेक असफल प्रयासों के पश्चात् जैसे-तैसे वह जहाज को दूसरी ओर मोड़कर उन ऊँची लहरों से बचा पाने में सफल हुआ । धीरे-धीरे तुफान थमने लगा । जहाज का एक हिस्सा टूट चुका था । जहाज की मरम्मत होने के बाद उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला लिया ।
समुद्र प्रवास पर निकले उन्हें लगभग तीन महीने हो चुके थे, लेकिन एक भी व्हेल नहीं दिखाई दी थी । उन्होंने अपना धैर्य समाप्त होने लगा था । तभी एक दूसरे जहाज के कप्तान ने उसका समुद्री नक्शा उन्हें थमाते हुए कहा, कि वहाँ से करीब दो हजार मील दूर समुंदर के बीचोबीच उन्हें बहुत बड़ी सफेद व्हेल मछलियाँ मिल सकती हैं, पर अगर वे चौकन्ने नहीं रहे, तो व्हेल मछलियाँ उन पर हमला बोल देगी । ऐसा कहकर वह चिन्हांकित नक्शा इस जहाज के कप्तान को सौंप देता है । अब इसेक्स नामक इस जहाज के कप्तान के पास दो रास्ते थें, एक वापस लौटने का, क्योंकि पहले ही तीन महीनों से वे इस समुंदर में खाक छान रहे थे, या दो हजार मील दूर प्रवास कर समुंदर के बीचोबीच जाकर, व्हेल मछलियों को मारकर उनका तेल निकाल लाने का । कप्तान ने आगे बढ़ने का फैसला लिया । यह एक बड़ा ही दु:साहस था । कुछ महीनों के अथक प्रयासों बाद वे समुंदर के बीचोंबीच उस जगह पहुँच गये, जो कि दूसरे जहाज के कप्तान ने बतायी थी ।
उन्हें समुद्र के पानी में कुछ हलचल नजर आई । शांत समुंदर में अचानक लहरे तेज होने लगी । जहाज हिलने लगा । तभी उन्हें जहाज के नीचे समुंदर में कुछ दिखाई दिया, पर पलभर में वह नजरों से ओझल हो गया । समुंदर के बीचोंबीच उन्हें ड़र का अहसास होने लगा । सभी मछुआरे अपने-अपने हथियारों को संभाल कर खड़े हो गये । तभी फिर से जहाज को एक और धक्का लगा । हर कोई चौकन्ना था, चेहरों पर तनाव था और दिलों में अतार्किक डर महसूस हो रहा था । तभी जहाज से सिर्फ बीस फुट की दूरी पर उन्हें एक विशालकाय सफेद व्हेल दिखाई दिया, शायद ही किसीने सपने में भी इतने बड़े व्हेल की कल्पना की होगी । कुछ समझने के पूर्व ही उस व्हेल मछली ने इसेक्स जहाज पर हमला बोल दिया, उसका हमला इतना तेज, ताक़तवर एवं विनाशकारी था, कि कुछ पलो में ही जहाज तहस नहस हो गया । जहाज डूबने लगा । हर कोई अपनी जान बचाने के लिए समुंदर में कूद पड़ा । उस डूबते जहाज से कुछ छोटी-छोटी नौकाएँ एवं खाने का कुछ सामान निकालने में कप्तान तथा कुछ साथी मछुआरे सफल गये ।
यहाँ से उनके बूरे दिनों की शुरुआत होती हैं । अगले कुछ महीनें वे उन छोटी नौकाओं में जीवन गुजारने के लिए मजबूर होते हैं । बिना खाना और पानी के वे तड़पने लगते हैं । उनके शरीर सूख जाते है, उनमें घाँव बनने लगते हैं, वहाँ पर खून जम जाता है । एक दिन उनका एक साथी तड़पने लगता है, उसे पानी चाहिए, लेकिन विडंबना देखिए, उस पानी भरे विशाल समुंदर में पीने लायक पानी नहीं । आखिरकार तड़पते हुए वह मछुआरा मर जाता है । मरने के बाद उसके साथी उसका माँस निकालकर खाने के लिए मजबूर हो जाते हैं । अन्ततः कुछ दिनों बाद, संयोगवशात् दूसरे समुद्री जहाज को ये छोटी नौकाएँ दिखाई देती हैं और इसप्रकार जो बचे रहें, डटे रहे, स्वयं को जिंदा रख पाए, उन्हें बचा लिया जाता है ।
सचमुच कभी-कभी यह अडव्हेंचर, यह जिज्ञासा, यह कुतूहल, यह खोज, मूर्खतापूर्ण होती है, कभी-कभी जिद्दी होती है, कभी-कभी जानलेवा होती है और बहुत बार अजेय होती है । यह पूरी कहानी हमें याद दिलाती है, हमारे अतीत की । जब हर दिन अडव्हेंचर था, हर दिन एक नई खोज थी । जरूर जिंदगी बहुत कठिन थी, जोखीम भरी थी, पर फिर भी यह अडव्हेंचर हमें हर दिन याद दिलाता था, कि हम ‘जिंदा’ है । धीरे-धीरे हम आधुनिक होते गए, जिंदगी के मायने बदलते गए । जिंदगी से अडव्हेंचर खत्म होते गया । जिंदगी बहुत सुरक्षित होती गई और इसी के साथ हम ‘जिंदा’ हैं, यह भाव भी खोता गया । हम भूल गए, कि हम मनुष्य हैं और हम रोबोट बन गए । यांत्रिक हो गए । हम भूल गए, कि हम सबके भीतर एक सुप्त इच्छा होती है कुछ खोजने की । कुतुहल होता है जानने का, जिद होती है जीतने की । हम भूल गए, कि मूलतः हम एक खोजी हैं ।
कभी कभार बॉलीवुड की ‘गुरू’ फिल्म का नायक गुरूकांत देसाई हमें फिरसे उस अडव्हेंचर की याद दिलाता है । फिल्म के आखिर में उसका अभिवादन करने पहुँचे कंपनी के सेकड़ों शेयरहोल्डर्स से कहता है, “सपने मत देखो, सपने कभी सच नहीं होते, ऐसा मेरा बापू कहता था । लेकिन मैंने सपना देखा, हमने सपना देखा, हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कंपनी बनने का सपना ।” और फिर वह सामने बैठे सभी शेयरहोल्डर्स से पूछता है, “तो क्या अपना यह सपना पूरा हुआ?” और वे हजारों लोग चिल्लाते, तालियाँ बजाते, नाचते हुए कहते हैं, “हाँ ।” और फिर गुरू पूछता है, “तो अब क्या करे, रूक जाएँ? या फिर देखे और एक सपना? .....बनना चाहते हो दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी?” और फिरसे लोग चिल्लाते, तालियाँ बजाते, नाचते हुए कहते हैं, “ हाँ ” और आखिरकार गुरू कहता है, “तो फिर बता दो दुनिया को, कि हम आ रहे हैं ।”
चलो दोस्तों, आज एक बार फिर कोई बड़ा सपना देखते हैं, अडव्हेंचर पर निकलते हैं, फिर से कुतूहल के भाव को जगाते हैं जो कि हमारा मूल स्वाभाव है, फिर से कुछ खोजते हैं । एक नई दिशा में चलते हैं, एक नई सुबह देखते हैं, फिर से प्यार भरा कोई नगमा गाते हैं । भूलना मत, कि मूलतः हम एक खोजी है । हम मनुष्य हैं, रोबोट नहीं । अडव्हेंचर हमारे खून में है । याद रखना ‘हम जिंदा है’ ।