क्यों हमें एन.एल.पी. को भारत में अलग नजरिए से देखना होगा?

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अगर हम एन.एल.पी. सीखने में उत्सुक हैं और उसे हमारे रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल भी करना चाहते हैं, तो एन.एल.पी. को हमें थोड़ा अलग नजरिए से देखना होगा ।

 

(बहुत सारे लोग एन.एल.पी. सीखते हैं, पर उसका इस्तेमाल दैनिक जीवन में नहीं कर पाते क्योंकि उन्होंने ट्रेनिंग में जो सीखा हैं, उसमें और रोजमर्रा के जीवन में जो इस्तेमाल करना है, उसमें बहुत ज्यादा अंतर आ जाता है ।) जैसे कि एन.एल.पी. में ‘एल’ का मतलब लँग्वेज है और एन.एल.पी. की निर्माण अंग्रेजी में हुआ, तो एन.एल.पी. में बहुत सारे ऐसे एन.एल.पी. पॅटर्नस् हैं, जो अंग्रेजी में रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होते हैं, पर उसी प्रकार के पॅटर्नस् हमें भारतीय भाषाओं में नहीं मिलतें, इतना ही नहीं भारत में बोली जाने वाली अंग्रेजी भी ग्रेट ब्रिटन या अमेरिकन अंग्रेजी से काफ़ी अलग है, इसीलिए एन.एल.पी. को समझते समय कम से कम भारत में हमें थोड़ा अलग नजरिया रखना होगा । इसीलिए, ‘क्यों हमें एन.एल.पी. को भारत में अलग नजरिए से देखना होगा?’ इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब हम थोड़ा विस्तार पूर्वक समझने की कोशिश करते हैं ।

1. मेटा मॉडल: आपको शायद पता होगा कि एन.एल.पी. की शुरूआत हुई मेटा मॉडल से, जो व्हरजीनिया सटायर तथा फ्रिटस् पर्ल्स् के भाषा कौशल पर आधारित था । थेरपी जगत में उस समय इन दोनों के नाम बहुत चर्चा में थे । यह दोनों बड़ी सहजतापूर्वक क्लांयट के अंतर्जगत में बदलाहट लाते थें । अंतर्जगत की जो चीजें बदलने में एवं जीवन को रूपांतरित करने में जहाँ दूसरों को सालों लगते थें, वहीं काम यह दोनों कुछ ही पलों में कर देते थें । बहुत बार सिर्फ एक काउंसलिंग सेशन में निराशा, चिंता, दुःख, क्रोध, नकारात्मकता दूर हो जाती थी । एक नई जिंदगी शुरू होती थी । लोग इनके पास रोते हुए आते थे और हँसते हुए जाते थे, निराश होकर आते थे और उत्साहित होकर लौटते थे । यह एक जादू था, कुछ पलों में जिंदगी बदल जाती थी । सालों से चली आयी समस्याएँ मिनिटों में दूर हो जाती थी । अब सवाल था कि सटायर और पर्ल्स् यह जादू करते कैसे थे?

जब रिचर्ड बॅन्डलर एवं जॉन ग्राइंडर ने, जो कि एन.एल.पी. के सह संस्थापक हैं, इन दोनों का निरीक्षण करना शुरू किया, तो उन्हें पता चला कि व्हरजीनिया सटायर और फ्रिटस् पर्ल्स् दोनों ही भाषा का इस्तेमाल इतने सटीकता एवं सहजता से कर रहे हैं कि उनकी भाषा के कुशलतापूर्वक प्रयोग के कारण ही वे अपने क्लाइंट के जीवन में बदलाहट ला रहे हैं । उनकी भाषा के इस विशिष्ट जादूई प्रयोग के गहन अध्ययन के पश्चात् रिचर्ड बॅन्डलर एवं जॉन ग्राइंडर ने उनकी भाषा के उपयोग में कुछ पॅटर्नस् या प्रतिरूप पाये । उन पॅटर्नस् को इकठ्ठा कर जब एन.एल.पी. संस्थापकों ने उनका इस्तेमाल करना शुरू किया, तब उन्हें भी आश्चर्यजनक परिणाम हासिल होने लगे । एन.एल.पी. संस्थापक भी सटायर और पर्ल्स् दोनों के समान थेरपी में परिणाम हासिल करने लगे । बदलाहट इतनी जल्दी हो सकती है, इस पर विश्वास करना कठिन था, पर जीवन रूपांतरित होने के सेंकडो प्रमाण सामने थें । परिणामस्वरूप उन लॅन्ग्वेज पॅटर्नस् को अधार बनाकर एन.एल.पी. पर पहली किताब लिखी गई, जिसका नाम था ‘दि स्ट्रक्चर ऑफ मॅजिक’, जो पूरी तरह से भाषा विज्ञान एवं भाषा के सटीक उपयोग पर आधारित है । किस प्रकार हम अपनी भाषा का इस्तेमाल करते हुए स्वयं के तथा दूसरों के जीवन को रूपांतरित कर सकते हैं, इस के बारे में पुस्तक में बताया गया था ।

मेटा मॉडेल हमें भाषा का इस्तेमाल करते हुए भाषा पर ही किस प्रकार सवाल खड़े किये जा सकते हैं, जिससे स्वयं के और दूसरों के अंतर्जगत को पूरी तरह से कैसे बदला जा सकता है, इसका मार्गदर्शन करता है ।

पर समस्या तब खड़ी होती है, जब मेटा मॉडल को हम प्रादेशिक भाषाओं या भारतीय अंग्रेजी में इस्तेमाल करना शुरू करते हैं । मेटा मॉडल के कुछ पॅटर्नस् ऐसे हैं, जो हमारी प्रादेशिक भाषाओं या भारतीय अंग्रेजी में इस्तेमाल ही नहीं होतें । हमारी भाषाओं में हम थोड़े अलग ढंग से सवाल पूछते हैं, इसीलिए मेटा मॉडल को हम उसके मूल रूप में कम से कम भारत में इस्तेमाल नहीं कर सकतें और यहीं वह कारण है, जिसके चलते आइ.बी.एच.एन.एल.पी. में हम ने मेटा मॉडल को प्रादेशिक भाषाओं में (मुख्यतः हिंदी) तथा भारतीय अंग्रेजी में ढाला है ।

2. मिल्टन मॉडल: मेटा मॉडल को इजाद करने के पश्चात् एन.एल.पी. फाउंडर्स भाषा के एक और जादूगर से मिले । यह जादूगर इतना प्रभावशाली था कि आपके समझ में आए बिना आपको बदलने की ताक़त रखता था । उसका नाम था मिल्टन इरिक्सन । मिल्टन इरिक्सन को हिप्नोसिस में महारत हासिल थी । जिंदगी की बहुत सी जटील समस्याएँ जैसे चिंता, निराशा, निरूत्साह, तनाव, विस्मरण, इ. का इरिक्सन पलभर में हिप्नोसिस के इस्तेमाल से समाधान कर देता था । उसने लाखों लोगों को लम्बे अरसे से चली आई समस्याओं से निजाद दिला दी और वह भी उनके समझ में आए बिना कि बदलाहट कैसे हुई ? वह इसप्रकार से बातें करता था कि चेतन मन रूक जाता था और सूचनाएँ अवचेतन मन में स्थिर हो जाती थी । जैसे ही सूचनाएँ अवचेतन मन में स्थिर हो जाती, वैसे जिंदगी बदल जाती थी । वह सीधे हमारे अवचेतन मन से संवाद करता था, क्योंकि जिंदगी कि कोई भी बदलाहट प्रथम अवचेतन मन में होती है और अगर बदलाहट अवचेतन मन में हो तो ही बदलाहट होती है, अन्यथा वह होती ही नहीं है । वह जिस प्रकार से बातें करता था, जिससे जीवन में बदलाहट होती थी, उन लँग्वेज पॅटर्नस् को एन.एल.पी. फांउडर्स ने इकठ्ठा कर मिल्टन मॉडल बनाया, जो एन.एल.पी. की और एक महत्वपूर्ण नींव है । मिल्टन मॉडल, मेटा मॉडल के विपरीत है । मेटा मॉडल में हम भाषा को सटीक या स्पेसिफिक करते हैं, तो मिल्टन मॉडल में हम भाषा को अस्पष्ट या व्हेग करते हैं ।

मिल्टन मॉडल के इस्तेमाल में भी वहीं दिक्कत आती है, जो मेटा मॉडल के साथ आती है । मिल्टन मॉडल के कुछ एन.एल.पी. पॅटर्नस् भारतीय भाषाओं में इस्तेमाल ही नहीं होतें, इसी लिए उन पॅटर्नस् के जगह भारतीय भाषाओं इस्तेमाल होने वाले एन.एल.पी. पॅटर्नस् हमें ढूंढने होंगे और यहीं काम आइ.बी.एच.एन.एल.पी. ने किया है । हमने मिल्टन मॉडल को भी भारतीय भाषाओं में विशेषतः हिंदी में ढाला है ।

3. कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस: मिल्टन मॉडल को ही कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस भी कहा जाता है, या हम कह सकते हैं कि कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस का एक रास्ता मिल्टन मॉडल के जरिए एन.एल.पी. ने हमारे सामने रखा । पर यह बात हुई 1975 की, जब मिल्टन मॉडल एन.एल.पी. में सीखाना शुरू हुआ और बीते चालीस सालों में अलग-अलग लोगों ने कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस पर काम किया हैं । इनमें से एक नाम है इगोर लोडोचोवोस्की । इन्होंने कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस को बड़े ही आसान तरीके से दुनिया के सामने रखा । उन्हें पढ़ते वक्त मुझे लगा कि मिल्टन मॉडल के साथ-साथ अगर कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस को भी पढ़ाया जाए, तो हम मिल्टन मॉडल से भी आगे जा सकते हैं और फिर हम ने कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस का हिंदी संस्करण निर्मित किया और वहीं से मैंने मिल्टन मॉडल के साथ-साथ कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस को एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर कोर्स में सीखाना शुरू किया जिसके हमें अद्भूत परिणाम मिलें ।

यहाँ पर समस्या वही भी थी, जो मेटा और मिल्टन मॉडल के साथ थी । कुछ एन.एल.पी. पॅटर्नस् भारतीय भाषाओं में थें ही नहीं । तो हमने उसके समान एन.एल.पी. पॅटर्नस् ढुंढकर कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस का हिंदी व्हर्जन बनाया, जो कि आइ.बी.एच.एन.एल.पी. का कॉपीराइट कंटेंट है । एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर में मिल्टन मॉडल के अलावा हम साठ से ज्यादा कॉन्वर्सेशनल एन.एल.पी. पॅटर्नस् सिखाते हैं, जिन्हें रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल करना बड़ा आसान है और इसप्रकार हमने कॉन्वर्सेशनल हिप्नॉसिस को भी भारतीय भाषाओं में विशेषतः हिंदी में ढाला ।  

4. आय एसेसिंग क्युज्: एन.एल.पी. में लगातार कई सालों तक आय एसेसिंग क्युज् सीखाए गए, आज भी कई एन.एल.पी. ट्रेंनिंग इंस्टिट्यूटस् में इन्हें पढ़ाया जाता है । आय एसेसिंग क्युज् का मतलब हुआ कि जिस प्रकार से आँखें अलग-अलग दिशा में घुमती है, उससे हम सामनेवाला उसके दिमाग में क्या कर रहा है उसे पहचान सकते हैं, जैसे कि जब किसी की आँखें उपरी दिशा में दाई और मुडती हैं, तो वह इंन्सान जो हुआ है, उसे याद करने की कोशिश कर रहा है और अगर उसकी आँखें उपर की तरफ बाई और घुमती है, तो इसका मतलब हुआ कि वह इन्सान दिमाग में इमेज बना रहा है । एक बार थोड़ा आय पोजिशन की नीचे दी गई इमेज को देख लें ।

अब अगर आप कल होटल में खाना खाने गए थे और आज मैंने आपसे पूछा कि क्या कल आपने होटल में खाना खाया? तो आपकी आँखें किस दिशा में जानी चाहिए? जवाब देने से पूर्व उपर दिया हुआ विवरण पढ़े और आय पोजिशन की इमेज एक बार फिर देख लें । जवाब है, उपरी दिशा में दाई तरफ, क्योंकि आप उस होटल में जाने की घटना को याद कर रहे हैं । अगर आप गए नहीं है पर फिर भी आप कह रहे हैं कि “हाँ, मैं गया था ।” और अगर आपकी आँखें उपरी तरफ बाई दिशा में घुमती हैं, तो आपके ‘हाँ’ कहने के बावजूद में आपका झूठ पकड लूंगा, क्योंकि आप होटल में ना जाने के बावजूद ‘हाँ’ कहने के लिए उस इमेज को दिमाग में बना रहे हैं ।

पर कुछ सालों के अध्ययन के बाद पता चला कि आय एसेसिंग क्युज् वैज्ञानिक आधारपर खरी नहीं उतरती है । पर फिर भी ढेर सारे एन.एल.पी. इंस्टिट्यूटस् ने इसे सीखाना जारी रखा । आइ.बी.एच.एन.एल.पी. में अब हम आय एसेसिंग क्युज् नहीं सिखाते इसके जगह सेन्सरी एक्युटी विकसित करने के जो वैज्ञानिक तरीके हैं, उन्हें सिखाया जाता है और भी बहुत सारे कारण हैं, जिनकी वजह से हमें एन.एल.पी. को भारत में थोड़ा अलग नजरिए से देखना होगा, जैसे कि माइन्डफुलनेस मैडिटेशन का थेरेपी बनना, पॉजिटिव सायकोलोजी का उदय होना, न्यूरो सायन्स का विकसित होना इ. पर इन कारणों पर अगले ब्लॉग में विस्तार सोचेंगे ।

एन.एल.पी. ट्रेनिंग के प्रतिभागियों का अनुभव उन्हीं के शब्दों में सुनिए ।
 
 
 

 

आप भी चाहते होंगे कि आपका व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन सफलता की नई बुलंदियों को छुएं, तो निश्चित ही आप एन.एल. पी. के जादुई और ताकदवर तकनीकों को सीखने के लिए भी बेहद उत्सुक होंगे ।

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