एन.एल.पी. सिखाने से पूर्व मास्टर्स और ट्रेनर पूरा करना जरूरी क्यों है?

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एन.एल.पी. सिखाने से पूर्व एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर कोर्स पूरा करना क्यों जरूरी है?

27 जनवरी 2006, टाईम्स ऑफ इंडिया में एक खबर छपी, जिसके मुताबिक भारत के रिटेल क्षेत्र में रोमांच की लहर दौड़ रही थी, शायद रिटेल में क्रांती घट रही थी, या शायद यह एक बड़े बदलाव की अभूतपूर्व ऐसी पहल थी । एक ऐसा कारनामा हुआ था, जो कि भारत के रिटेल बाजार ने पहले न कभी देखा था और ना ही कभी इसके बारे में सोचा था । जो कुछ घटा था वह अविश्वसनीय, अद्भूत और अकल्पनीय था । सिर्फ एक दिन पहले याने 26 जनवरी 2006 को मुंबई के कांदिवली के एक रिटेल स्टोर पर भीड़ उमड़ पड़ी थी, जहाँ देखो वहाँ सिर्फ और सिर्फ लोग दिखाई दे रहे थें । सैकड़ों लोग घंटों से लाईन में खड़े थें, अंदर जाने के लिए रस्साकस्सी चल रही थी । यहीं हाल कोलकता के व्ही.आय.पी. रोड का था । लोगों की भीड़ इतनी बढ़ गयी थी, कि एअरपोर्ट की तरफ जानेवाले रोड पर भी ट्रैफ़िक जॅम हो चुका था । अंत में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा, तब जाकर लोग लाईन में खड़े रहकर अंदर जाने लगें और यहीं हाल बैंगलोर, दिल्ली एवं गुरूग्राम का था । इसके पीछे वजह यह थी कि दस हजार का टीवी सिर्फ छह हजार में मिल रहा था, महंगे मोबाईल फोन्स पर तीस से चालीस प्रतिशत की छूट थी, डिझायनर सोफा बड़ा ही सस्ता था सिर्फ और सिर्फ दस हजार में मिल रहा था । 26 जनवरी का वह दिन ग्राहकों के लिए सस्ती सौगाध लाया था, क्योंकि उस दिन का नाम था, ‘सबसे सस्ता दिन’ और ऑफर देनेवाला रिटेल स्टोर था ‘बिग बझार’। 26 जनवरी के उस सबसे सस्ते एक दिन में बिग बझार ने 30 करोड़ रूपये कमाकार इतिहास रच दिया था । पहली बार किसी रिटेल स्टोर ने सिर्फ एक ही दिन में 30 करोड़ का बिझनेस भारत में किया था, जिस कारण रिटेल क्षेत्र में खलबली मची हुई थी ।

इस सपने की शुरूआत लगभग छह माह पहले हुई थी, जब ‘26 को 26’ तय हुआ था, याने 26 जनवरी को 26 करोड़ कमाने का लक्ष्य रखा गया था । आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि जब यह कठिन और दुस्साहसिक लक्ष्य रखा गया, तब इसके पीछे कोई सर्वे, कोई गणितीय समीकरण या फिर कोई आंकड़ों का आधार नहीं था । सिर्फ और सिर्फ एक चाहत थी, कि कुछ तो वास्तव में असाधारण किया जाए, एक भव्य विजय की प्राप्ति हो, एक विशाल और उत्तेजनापूर्ण चुनौती को पूरा किया जाए । एक भव्य और दुस्साहसिक लक्ष्य निश्चित करने के बाद सब ने मिलकर लगन एवं समर्पण से काम किया । दिन रात मेहनत कर जबरदस्त इच्छाशक्ति का परिचय दिया गया । सबसे पहले इस भव्य सपने के छोटे से छोटे हिस्से पर ध्यान दिया गया, सटीक रणनीति तैयार की गयी और फिर उस अशक्यप्राय लक्ष्य की ओर बढ़ना शुरू हुआ । परिणामत: सिर्फ एक दिन में करोड़ों का मुनाफ़ा कमाते हुए रिटेल क्षेत्र में एक नया इतिहास रचा गया ।

इसका मतलब ही यह हुआ, कि अगर हमें जिंदगी में कुछ बड़ा करना हो, तो दो कौशल विकसित होना बेहद जरूरी है ।

1. आपको वह व्यापक चित्र दिखाई देना जरूरी है और

2. उस व्यापक चित्र को ध्यान में रखते हुए उसके छोटे से छोटे विवरण पर गौर करते आना चाहिए ।

एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर के बाद जब आप एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर का कोर्स के लिए आते हैं, तब यहीं दो कौशल विकसित करने पर हमारा ध्यान होता है । एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर कोर्स में आपको एन.एल.पी. का ‘26 को 26’ दिखाई देता है, याने आपको एन.एल.पी. ट्रेनिंग का व्यापक चित्र दिखाई देता है । इस व्यापक चित्र को ध्यान में रखते हुए एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर समझना और सिखाना बेहद आसान जाता है । याने एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर के स्तर पर आप जंगल को भी देख सकते हैं और एक अकेले पेड़ को भी देख सकते हैं । इसका मतलब ही यह हुआ, कि एन.एल.पी. के बड़े जंगल को देखते हुए आप एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर के हर एक अकेले पेड़ याने टॉपिक को बड़ी ही सुलभता के साथ समझ भी सकते हैं और सीखा भी सकते हैं ।

इसे उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करते हैं । एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर कोर्स में हम ‘स्टेट मैनेजमेंट’ सीखते हैं । जिसमें यह सिखाया जाता है, कि जिस मानसिकता का हम जाने अनजाने में अभ्यास करते हैं, वह मानसिकता धीरे-धीरे सघन होने लगती है । अगर दिन भर हम रिक्तता, निराशा, उदासी का अनुभव करते हैं, तो कुछ दिनों बाद रिक्तता, निराशा, उदासी हमारी स्थायी मन:स्थिति बन जाती है । आपने देखा होगा, कुछ लोग हर अच्छी चीज में बुराई ढूँढ़ने में माहिर होते हैं, इसके विपरीत भी होता है । यह सब जाने अनजाने दोहराई हुई प्रक्रियाओं के परिणाम मात्र हैं । जो लोग दिन भर खुशी, आनंद एवं उत्साह की मानसिकता में जीते हैं, उनके जीवन में खुशी, आनंद और उत्साह की मानसिकता सघन होने लगती है । तो ‘स्टेट मैनेजमेंट’ में हम अपनी स्टेट या मानसिकता को नियंत्रित करने एवं उसे दिशा देने की एक ताक़तवर तकनीक सीखते हैं । जिसमें हम चार बातों पर ध्यान देते हैं ।

सबसे पहले स्वयं की मानसिकता को समझो, उसके प्रति जागरूक बनो, उसे बदलो और अंत में उसका इस्तेमाल करो । लगभग आधा दिन हम स्टेट मैनेजमेंट पर एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर के दौरान चर्चा करते हैं, एक्टिव्हीटीज करते हैं, डेमो देखते हैं और अंत में प्रॅक्टिकल आजमाते हैं । पर जैसे ही हम एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर कोर्स में आते हैं, तो हम स्टेट मैनेजमेंट के अगले एवं थोड़े गहन हिस्से की तरफ मुड़ते हैं, जिसे ‘मेटा स्टेटस्’ कहा जाता है । अब थोड़ा पारिभाषिक शब्दों को बाजू में रख दो । तो इस में समझने वाली बात यह है, कि अगर आपको ‘स्टेट मैनेजमेंट’ का स्वयं तथा दूसरों के लिए इस्तेमाल करना है, तो एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर में वह काम पूरा हो जाता है, पर अगर आपको ‘स्टेट मैनेजमेंट’ सिखाना है, तो बतौर एन.एल.पी. ट्रेनर ‘मेटा स्टेट’ के इस्तेमाल में महारत हासिल करना, आपके लिए बेहद जरूरी होता है, जो एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर कोर्स का हिस्सा है । 

जब आप एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर कोर्स का इन-हाउस वर्कशॉप पूरा करते हैं, तब आप एन.एल.पी. के उस पूरे जंगल को देख पाते हैं, जिसके बाद एक अकेले पेड़ को देखना आसान हो जाता है । संक्षेप में एन.एल.पी. मास्टर तथा एन.एल.पी. ट्रेनर कोर्स आपको एन.एल.पी. का व्यापक चित्र दिखाता है, जिससे एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर समझना और सिखाना आसान हो जाता है, इसीलिए एन.एल.पी. सिखाने से पूर्व मास्टर्स और ट्रेनर का कोर्स पूरा करना बेहद जरूरी होता है ।

आपके एन.एल.पी. ट्रेनर बनने के सपने को वास्तव में सकारित होते देखना हमारे लिए एक आनंददायी अनुभव होगा । इस पूरी यात्रा में इंडियन बोर्ड ऑफ़ हिप्नोसिस एंड न्यूरो-लिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग (आइ.बी.एच.एन.एल.पी.) हमेशा आपके साथ रहेगा, यह मैं आप से वादा करता हूँ ।

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