अगर आप एन.एल.पी. सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी में सीख रहे हों, तो आप आपका पैसा एवं समय दोनों बर्बाद कर रहे हों।
If You Are Learning Meta Model & Milton Model of NLP ONLY in English, You Are Wasting Your Time & Money! Part - 1
अगर आप एन.एल.पी. सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी में सीख रहे हों, तो आप अपना पैसा एवं समय दोनों बर्बाद कर रहे हों । भाग – १
आपको शायद पता होगा कि एन.एल.पी. की शुरूआत हुई मेटा मॉडल से, जो व्हरजीनिया सटायर तथा फ्रिटस् पर्ल्स् के भाषा कौशल पर आधारित था । थेरपी जगत में उस समय इन दोनों के नाम बहुत चर्चा में थे । यह दोनों बड़ी सहजतापूर्वक क्लांयट के अंतर्जगत में बदलाहट लाते थें । अंतर्जगत की जो चीजें बदलने में एवं जीवन को रूपांतरित करने में जहाँ दूसरों को सालों लगते थें, वहीं काम यह दोनों कुछ ही पलों में कर देते थें । बहुत बार सिर्फ एक काउंसलिंग सेशन में निराशा, चिंता, दुःख, क्रोध, नकारात्मकता दूर हो जाती थी । एक नई जिंदगी शुरू होती थी । लोग इनके पास रोते हुए आते थे और हँसते हुए जाते थे, निराश होकर आते थे और उत्साहित होकर लौटते थे । यह एक जादू था, कुछ पलों में जिंदगी बदल जाती थी । सालों से चली आयी समस्याएँ मिनिटों में दूर हो जाती थी । अब सवाल था कि सटायर और पर्ल्स् यह जादू करते कैसे थे?
जब रिचर्ड बॅन्डलर एवं जॉन ग्राइंडर ने, जो कि एन.एल.पी. के सह संस्थापक हैं, इन दोनों का निरीक्षण करना शुरू किया, तो उन्हें पता चला कि व्हरजीनिया सटायर और फ्रिटस् पर्ल्स् दोनों ही भाषा का इस्तेमाल इतने सटीकता एवं सहजता से कर रहे हैं कि उनकी भाषा के कुशलतापूर्वक प्रयोग के कारण ही वे अपने क्लाइंट के जीवन में बदलाहट ला रहे हैं । उनकी भाषा के इस विशिष्ट जादूई प्रयोग के गहन अध्ययन के पश्चात् रिचर्ड बॅन्डलर एवं जॉन ग्राइंडर ने उनकी भाषा के उपयोग में कुछ पॅटर्नस् या प्रतिरूप पाये । उन पॅटर्नस् को इकठ्ठा कर जब एन.एल.पी. संस्थापकों ने उनका इस्तेमाल करना शुरू किया, तब उन्हें भी आश्चर्यजनक परिणाम हासिल होने लगे । एन.एल.पी. संस्थापक भी सटायर और पर्ल्स् दोनों के समान थेरपी में परिणाम हासिल करने लगे । बदलाहट इतनी जल्दी हो सकती है, इस पर विश्वास करना कठिन था, पर जीवन रूपांतरित होने के सेंकडो प्रमाण सामने थें । परिणामस्वरूप उन लॅन्ग्वेज पॅटर्नस् को अधार बनाकर एन.एल.पी. पर पहली किताब लिखी गई, जिसका नाम था ‘दि स्ट्रक्चर ऑफ मॅजिक’, जो पूरी तरह से भाषा विज्ञान एवं भाषा के सटीक उपयोग पर आधारित थी । किस प्रकार हम अपनी भाषा का इस्तेमाल करते हुए स्वयं के तथा दूसरों के जीवन को रूपांतरित कर सकते हैं, इस के बारे में पुस्तक में बताया गया था ।
मेटा मॉडेल हमें भाषा का इस्तेमाल करते हुए भाषा पर ही किस प्रकार सवाल खड़े किये जा सकते हैं, जिससे स्वयं के और दूसरों के अंतर्जगत को पूरी तरह से कैसे बदला जा सकता है, इसका मार्गदर्शन करता है ।
उदाहरण के तौर पर, जब कभी आपका कोई दोस्त या आपका क्लाइंट आपसे यह कहता है कि ......
"मैं कभी-कभी अलग थलग महसूस करता हूँ...... " अब इस वाक्य के बारे में जरा सोचते हैं ।
यह वाक्य हमें अपने दोस्त या क्लाइंट के अंतर्जगत के बारे में बहुत कुछ बता रहा है, पर बहुत कुछ छुपा भी रहा है, जिसे हम एन.एल.पी. में डिलीशन कहते हैं । यह वाक्य सुनने के बाद हमें लगता है कि हमें समझ में आ गया, कि उसे क्या कहना है । पर मेटा मॉडल कहता है कि आपको यह वाक्य सुनने के बाद जो समझ में आया, वह आपका भ्रम है । अब सवाल यह है कि इस वाक्य में जो डिलीट किया गया है, उसे किस प्रकार से खोजे? तो मेटा मॉडल कहता है कि इस वाक्य को सवाल पूछें । इस प्रकार से सवाल पूछें कि जो डिलीट हुआ है, वह सामने आए । जैसे कि,
मैं कभी-कभी अलग थलग महसूस करता हूँ ।
पहला सवाल - किससे?
दुसरा सवाल - ऐसा क्या है, जिससे आपको अलग-थलग महसूस होता है?
ये दोनों सवाल हमें और ज्यादा जानकारी देंगे । इस से सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि जो इस प्रकार से बात कर रहा है, उसे अपने अंतर्जगत की और गहन जानकारी मिलेगी, शायद उसका टूटा हुआ अंतर्जगत सिर्फ एक सवाल द्वारा फिर से पूर्ववत हो सकता है ।
.... एक और उदाहरण देखते हैं ।
“तुम मेरी कभी चिंता या केअर नहीं करते .....” अब इस वाक्य के बारे में जरा सोचते हैं ।
अब हमें लगेगा कि बात समझ में आ गयी । पर क्या सही में हमें समझ में आया है, या समझ का सिर्फ भ्रम है । अब इस वाक्य में जो क्रिया है ‘चिंता करना या केअर करना’ क्या हमें इसका सही अर्थ पता है? शायद नहीं । ‘तुम मेरी कभी चिंता नहीं करते’ यह वाक्य, कहने वाले के अंतर्जगत के बारे में कुछ कह रहा है, शायद कहने वाले को भी ठीक-ठीक अंदाजा नहीं है, कि वह क्या कह रहा है? अब मेटा मॉडल कहता है कि सवाल करे, पर प्रश्न उठता है कैसे?
वाक्य - तुम मेरी कभी चिंता या केअर नहीं करते ।
पहला सवाल - किस विशेष रूप से मैं तुम्हारी चिंता या केअर नहीं करता?
दुसरा सवाल - मैं ऐसा क्या नहीं करता, जिससे तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारी चिंता या केअर नहीं करता?
तिसरा सवाल - मैं ऐसा क्या करता हूँ, जिससे तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारी चिंता या केअर नहीं करता?
हर सवाल पर जरा गौर करें, इन सवालों के जवाब में क्या उत्तर आ सकेंगे, इसके बारे में भी थोड़ा सोचिए ।
जैसे ही आप इस प्रकार इस वाक्य को सवाल करते हो, तो बोलने वाला भी सोचने पर मजबूर हो जाता है, कि सही में चिंता करने का उसका मतलब क्या है? क्या चिंता करने की उसकी व्याख्या सामने वाले को पता है? या चिंता करने की उसने जो व्याख्या बनाई है, वह बुनयादी ढंग से गलत है? इस प्रकार के सवालों से हम दूसरे का टूटा हुआ अंतर्जगत फिर से बुनने में उसकी मदद कर सकते हैं । ये सवाल क्लाइंट को अपने अंतर्जगत के बारे और सटीक जानकारी देंगे और इसप्रकार थोड़े से अभ्यास के पश्चात् भाषा सही इस्तेमाल करते हुए हम अंतर्जगत में बदलाहट ला सकते हैं ।
जब आप यह मेटा मॉडेल, जो कि एन.एल.पी. की बुनयादी नींव है, केवल अंग्रेजी में सीखते हो और रोजमर्रा के जीवन में आप किसी दूसरी भाषा का इस्तेमाल करते हो, तो आप कभी भी मेटा मॉडल का इस्तेमाल ही नहीं कर पाएँगे । मेटा मॉडल के चालीस से ज्यादा पॅटर्नस् हिंदी या दूसरी प्रादेशिक भाषाओं में भाषांतरित करना किसी भी प्रतिभागी जो एन.एल.पी. सीख रहा है, उसके लिए लगभग नामुमकिन है । इससे होता यह है कि ख्यातनाम एन.एल.पी. ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट से एन.एल.पी. सीखने के बावजूद भी कोई भी एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर रोजमर्रा के जीवन में उसका इस्तेमाल नहीं कर पाता है । इससे इन लँग्वेज पॅटर्नस् का इस्तेमाल करते हुए ना वह स्वयं के जीवन को रूपांतरित कर पाता है और ना दूसरों के जीवन में परिवर्तन लाने में सक्षम होता है ।
जब मैं एन.एल.पी. सीख रहा था, तो मैंने अपने ट्रेनर से पूछा कि आपने तो ये ढेर सारे लँग्वेज पॅर्टनस् अंग्रेजी में सिखा दिए, पर अब मेरी रोजमर्रा की भाषा तो हिंदी एवं मराठी है, तो मैं इन लँग्वेज पॅर्टनस् का किस प्रकार से इस्तेमाल करूँ? तो मुझे जवाब मिला कि वह आपकी समस्या है, आप ही उसे हल करें । मेरे साथ उस एन.एल.पी. ट्रेनिंग वर्कशॉप में और भी पच्चीस प्रतिभागी थें, उन पच्चीस में से लगभग सभी एन.एल.पी. प्रॅक्टिशनर्स की यहीं दिक्कत थी । रोजमर्रा के जीवन में इन लँग्वेज पॅर्टनस् का इस्तेमाल आप तभी कर पायेंगे, जब आपने रोजमर्रा की भाषा में उन्हें सीखा होगा । ज्यादातर एन.एल.पी. ट्रेनिंग कोर्सेस में यह बुनयादी भूल होती है । इन लँग्वेज पॅर्टनस् को हमें रोजमर्रा की भाषा में सीखना होगा, तभी हम उन्हें अच्छे तरीके से इस्तेमाल कर सकेंगे ।
पर दुर्भाग्य से भारत में जो एन.एल.पी. कोर्सेस कंडक्ट किये जाते हैं, वे एक तो पूरी तरह से अंग्रेजी में होते हैं, या तो पूरी तरह से हिंदी में । इससे प्रतिभागियों का बड़ा नुकसान होता है, पर जब तक उन्हें कुछ समझ में आए, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । अतः आई.बी.एच.एन.एल.पी. में हम ने बहुत सोच विचार के पश्चात् मेटा मॉडल अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी सीखना शुरू किया । यकिन मानिए, ऐसा करने वाली आई.बी.एच.एन.एल.पी. यह पहली एन.एल.पी. ट्रेनिंग संस्था है ।
अगर आप एन.एल.पी. सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी में सीख रहे हों, तो आप आपका पैसा एवं समय दोनों बरबाद कर रहे हों, ऐसा जो हम कहते हैं, इसका और भी एक कारण है, जिसे हम अगले ब्लॉग में देखेंगे । तब तक के लिए ......
‘एन्जॉय यूवर लाईफ एंड लिव्ह विथ पॅशन !’