सिर्फ एक हुनर जो आपकी जिंदगी बदल कर रख देगा.....
सिर्फ एक हुनर जो आपकी जिंदगी बदल कर रख देगा.....
क्या आपको आपके जिंदगी का एक ऐसा दिन याद है, जब आप दुःख से तड़प रहे थें ? चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक? एक ऐसा दिन जब दर्द आपके बर्दाश्त के बाहर चला गया हो? लाख कोशिशों के बाद भी उस पीड़ा का अंत ना हुआ हो ? एक ऐसा दिन, जब आपने गहन निराशा का अनुभव किया हो, एक ऐसा दिन जब आप थक चुके थे, टुट चुके थे, जिंदगी से उब चुके थे ? क्या आप याद कर पा रहे हैं, उस समय आपके दिमाग में क्या हो रहा था ? क्या इमेजेस आपके दिमाग में दौड़ रही थीं ? आपको आपके शरीर में क्या महसूस हो रहा था ? उस दर्द का एहसास कैसा था ? आपके साथ क्या हो रहा था ? कौनसी भावनाओं को आप महसूस कर रह थें ?
क्या इस दुःख या दर्द की अवस्था में रहकर हम जीवन में उमदा प्रदर्शन कर सकते हैं ? आप कहेंगे, हरगिज नहीं । पर क्या आपको पता है, आपने जो दुःख, दर्द महसूस किया होगा, उससे सौ गुना ज्यादा दर्द महसूस करने के बाद भी कोई ऑलिम्पिक में गोल्ड मैडल जीत सकता है ? आप कहेंगे, यह कैसे संभव हैं?
जिंदगी भर व्हिलचेअर पर बैठकर इस एथलीट ने खेलों की दुनिया में नए कीर्तिमान स्थापित किए । मारीके वेवोर्त आज हमारे बीच नहीं है । उसने लंदन पैरालिम्पिक में 200 मीटर की रेस में सिल्वर और 100 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीता है । व्हीलचेअर पर जब वह दौड़ लगाती थी, तब उसकी फुर्ती देखने लायक होती थी । उसका आत्मविश्वास, उसका ज़ज्बा, उसकी ऊर्जा, उसकी जीत की भूख, उसे औरों से अलग खड़ा करती थी । शायद शारीरिकरूप से वह उस व्हिलचेअर पर सीमित थी, पर मानसिकरूप वह प्रचंड शक्तिशाली थी ।
दर्द क्या होता है? यह शायद मारीके वेवोर्त से अच्छा किसी को पता नहीं होगा । जब आप उसकी पीड़ा को देखेंगे, तब शायद आपको आपके दर्द पर हंसी आएगी । आप शायद आपके दुःख को, दर्द को, दुःख दर्द कहने से भी कतराने लगोगे । शायद मारीके वेवोर्त का दर्द आपके दुःख की परिभाषा बदल देगा ।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मारीके वेवोर्त को इच्छा मरण लेना था । यह उसकी आखरी ख्वाहिश थी । पर मरने से पहले उसे अपनी और एक इच्छा पूरी करनी थी । उसे रियो पैरालिम्पिक में गोल्ड मेडल जितना था । उस वक्त यह चैम्पियन गहरे दर्द से गुजर रही थी । शारीरिक पीडा इतनी सघन हो चुकी थी, कि रातों को वह ठीक सो भी नहीं पाती । रात-रात भर दर्द से करहाती हुई सुबह होने का इंतजार करती थी । इस चैम्पियन को स्पाइन की एक ऐसी बीमारी हुई थी, जिसका कोई भी इलाज नहीं हो सकता था । स्पाइन की यह लाईलाज बीमारी लाखों में से किसी एक को होती है और इससे उस पीड़ित व्यक्ति को भयंकर दर्द होता है । वह इस दर्द से तड़पती थी । उसने एक इंटरव्यू में कहा है, “रियो के बाद मेरा करियर खत्म हो जाएगा । मैंने इच्छामरण के बारे में सोचना शुरू कर दिया है । मुझे रोज बेहद दर्द से गुजरना पड़ता है । मैं रातों को ठीक से सो भी नहीं पाती हूँ । किसी-किसी रात तो मैं सिर्फ 10 मिनट ही सो पाती हूँ । इस सबके बावजूद मुझे ट्रेनिंग भी लेनी होती है । भले ही मैं अपनी बीमारी से लड़ रही हूँ , लेकिन मैं हार्ड प्रैक्टिस करती हूँ । उम्मीद है, कि मैं रियो में पोडियम पर गोल्ड मेडल के साथ अपना करियर खत्म करूँगी । मैं चाहती हूँ , सब लोग हाथों में शेम्पैन का गिलास लेकर मुझे याद करें । मैं बेहद दर्द से गुजर रही हूँ , लेकिन फिर भी मैं रियो में गोल्ड जीतना चाहती हूँ ।’’
अब सवाल यह है, कि इतने दर्द के बावजूद मारीके वेवोर्त किस प्रकार से इतनी कठिन प्रैक्टिस कर पाती थी ? हर दिन सुबह वह इस दर्द को कैसे हरा पाती थी ?....जरूर वह अपने दिमाग में कुछ ऐसा कर रही थी, जो हमें पता नहीं है, या हमें उसका अभ्यास नहीं है । वह बहुत ही कुशलता से स्वयं के दिमाग में अपना फोकस शिफ्ट कर पा रही थी । वह अपना फोकस दर्द से हटाकर प्रैक्टिस पर ला रही थी । वह उसका फोकस दुःख से हटाकर उसके सपने पर ला रही थी । वह अपना फोकस असंभव से संभव पर ला रही थी । यह करने में वह इतनी कुशल हो चुकी थी, कि रात को दर्द से तड़पने के बाद भी सुबह पूरी ऊर्जा से प्रैक्टिस शुरू करती थी ।
उसी इंटरव्यू में आगे वह कहती है, ‘‘मैं रियो में मेडल जीतना चाहती हूँ, लेकिन यह बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि मुकाबला बेहद कड़ा है । मैं हर लम्हें को जीना चाहती हूँ । जब मैं कुर्सी पर बैठती हूँ, तो मेरी नजरों के सामने से हर चीज गायब हो जाती है । मैं नेगेटिव सोच को दूर रखती हूँ । मैं डर, दुःख और तकलीफ को अपने करीब नहीं आने देती । मैंने ऐसे ही पिछले ऑलिम्पिक में मेडल जीते हैं और इस ऑलिम्पिक में भी मैं ही जीतूंगी ।’’
नवीनतम खोजे बता रही हैं कि फोकस हमारे मसल जैसे काम करता है । अगर हम ने उसका उपयोग नहीं किया, तो वह धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है, जैसे ही हम उसका उपयोग करने लगते हैं, वैसे-वैसे फोकस करने की हमारी क्षमता बढ़ने लगती है । आधुनिक युग में मोबाइल के बढ़ते गलत इस्तेमाल से सामान्य व्यक्ति का ध्यान अवधि (अटेंशन स्पॅन) चेतावनी स्तर से भी काफी नीचे गिर चुका है, यह सभी मनोवैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय हैं । अगर हमें जिंदगी में बेहतरीन परिणाम अर्जित करने हैं और साथ में आनंद से जीना है, तो हमें अपने जीवन में सोच की एक ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी, जहाँ पर हमारा फोकस हमेशा बेहतरीन परिणामों पर हो, ऐसे परिणाम या रिझल्ट, जो हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हैं । जब हम लगातार अडिगता से अपने परिणामों पर फोकस करते हैं, तब तुरन्त ही हमारा वर्तन और सोच दोनों बदल जाते हैं । जीवन में जहाँ पर भी हमारा फोकस होता है, उसी का हम अनुभव करते हैं और मन के गहन तल पर उसे ही जीने लगते हैं । हम जिन समस्याओं पर फोकस करते हैं, वे समस्याएँ बढ़ती जाएँगी, समस्याओं पर का आपका फोकस आपको असहाय महसूस कराएगा । जिससे आपका वर्तन प्रभावित होगा, तथा इससे और नई समस्याएँ उत्पन्न होगी । इस के विपरीत अगर आपका फोकस आपके बेहतरीन प्रदर्शन पर होगा, तो आपको कई नई संभावनाएँ दिखाई देगी । आपको नई ऊर्जा का अनुभव होगा, इसी के परिणाम स्वरुप आपका वर्तन प्रभावित होगा एवं आप और नई संभावनाएँ देखने में समर्थ होंगे तथा आपका प्रदर्शन और बेहतरीन होगा ।
इसी लिए अगर जीवन में आपको सिर्फ एक कौशल सीखना हो, तो वह कौशल होगा ‘आपके फोकस को नियंत्रित करना और उसे सही दिशा देना ।’ सिर्फ यह एक कौशल आपके जीवन को आमूलाग्र बदल कर रख देगा ।
आखिरकार हमारी जिदंगी है क्या ? हमारा फोकस ही तो हमारी जिंदगी है । हम सभी के जीवन में इस समय हजारों चीजे घट रही हैं,
- जो खुश है, वह जाने अनजाने खुशी पर फोकस कर रहा है ।
- जो दुखी है, वो जाने अनजाने दुःख पर फोकस कर रहा है ।
- जो उत्साही है, वह जाने अनजाने उत्साह पर फोकस कर रहा है ।
- जो निराश है, वह जाने अनजाने निराशा पर फोकस कर रहा है ।
जिस पर फोकस किया जा रहा है, वे चीजे अपने आप बढ़ती जा रही है । चाहे वे नकारात्मक हो, या सकारात्मक । अगर आप अपने जीवन में सतत नकारात्मक अनुभव कर रहे हो, या असफल परिणाम हासिल कर रहे हो, तो थोड़ा अंदर जरूर टटोलना कि कही अनजाने में आपके फोकस को नियंत्रित करने में तो आप असफल नहीं हो रहे हैं? सवाल यह है, कि आप किस पर फोकस कर रहे हैं ?
याद रखना ‘हमारा फोकस ही हामारी जिंदगी है ।’
एन.एल.पी. ट्रेनिंग वर्कशॉप में हम ‘फोकस’ खड़ा करने की दिमागी प्रक्रिया सीखते हैं । हमें लगेगा, कि ‘फोकस’ एक परिणाम है, पर नहीं फोकस एक दिमागी प्रक्रिया है । अगर यह दिमागी प्रक्रिया है, तो उसके कुछ इन्ग्रेडियंटस् याने घटक होंगे और अगर उसके कुछ घटक होंगे, तो उन्हें जानने के बाद हम उस फोकस को बड़ी ही आसानी से स्वयं के दिमाग में खड़ा कर सकते हैं । एन.एल.पी. हमें फोकस के इन्ग्रेडियंटस् के बारे में समझाता है और उसे स्वयं के जीवन में खड़ा करने में मदद करता है ।
अब एक ऐसे सवाल के साथ आपको छोड जाता हूँ , जिससे मैंने अपने फोकस को नियंत्रित किया, उसे दिशा दी । जब भी कोई उलझन होती है, तो मैं यह सवाल अपने आप से पूछता हूँ....
कौन से ऐसे विशिष्ट परिणाम है, जिन्हें प्राप्त करने के लिए मैं प्रतिबध्द हूँ?
एक वादा मैं जरूर आप से कर सकता हूँ कि अगर आप ठान ले, तो बहुत ही सरलता से फोकस्ड रहने की इस प्रक्रिया को सीखकर आप अपने जीवन में आश्चर्यजनक परिणाम अर्जित कर सकते हैं । आवश्यकता है, इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाने की ।
चलो फिर अगले ब्लॉग में मिलते हैं ।
तब तक के लिए ‘एन्जॉय युवर लाईफ एंड लिव्ह विथ पॅशन ।’