थिन स्लाइसिंग और एन.एल.पी. ( पार्ट 2 )

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थिन स्लाइसिंग और एन.एल.पी. (पार्ट 2)

एक संकल्पना जो शायद आपकी पूरी ‘निर्णय प्रक्रिया’ को बुनियादी रूप से बदल कर रख देगी

 

 

पिछले ब्लॉग में हमने थिन स्लाइसिंग क्या है, यह जानने की कोशिश की । हमने थिन स्लाइसिंग की व्याख्या भी देखी । अब इस ब्लॉग की शुरुआत हम एक बुनियादी सवाल के साथ करते हैं, आखिरकार हमारा मस्तिष्क थिन स्लाइसिंग को किसप्रकार से अंजाम देता है? या हमारा अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस काम कैसे करता है? या स्नॅप जजमेंट या फर्स्ट इम्प्रेशन की प्रक्रिया में मस्तिष्क में होता क्या है? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल, सही निर्णय लेने के लिए क्या थिन स्लाइसिंग पर भरोसा किया जा सकता है?

इस सवाल के जवाब में एमबड़ी और रोझेन्थल नामक शोधकर्ताओं द्वारा किया गया एक शोध प्रस्तुत करता हूँ । इन शोधकर्ताओं को यह जानना था, कि क्या ‘थिन स्लाइसिंग’ के जरिए पलभर में हम जिस निर्णय तक पहुंचे हैं, इससे विपरीत अगर ज्यादा समय दिया जाए, गहन सोच विचार किया जाए, तो क्या कोई अलग निर्णय होगा ? अगर सोच विचार करने के बाद, समय देने के बाद भी निर्णय नहीं बदलता है, तो इसका साफ-साफ मतलब यह हुआ कि ‘थिन स्लाइसिंग’ या ‘स्नॅप जजमेंट’ या ‘फर्स्ट इम्प्रेशन’ पर भरोसा किया जा सकता है ।

इसके लिए एमबड़ी और रोझेन्थल ने कुछ शिक्षकों के सिखाते वक्त के व्हिडीयोज् बनाए । इन घंटे भर के व्हिडीयोज् के छोटे-छोटे क्लिप्स् बनाए । कुछ क्लिप्स् दो सेकंद के थें, तो कुछ पाँच सेकंद के । सारे क्लिप्स् नॉन व्हर्बल बिहेव्हीयर के थे, याने ना बातें थी, ना ही आवाज । इन छोटी क्लिप्स् को कॉलेज में आए नये छात्रों को दिखाया गया । क्लिप्स् बहुत ही ज्यादा छोटी थी, सिर्फ दो से पाँच सेकंद की । इतनी छोटी क्लिप देखने के बाद छात्रों का उनका अवलोकन या राय पूछी गयी । छात्रों का एक छोटासा इंटरव्यू लिया गया । उनसे पूछा गया, कि सिर्फ दो से पाँच सेकंद की क्लिप देखने के बाद उनको शिक्षक कैसे लगे ? उनके जवाब रिकॉर्ड किए गए ।

इसके दो से तीन महीनों बाद फिर से इंटरव्यू लिए गए । अब छात्र उन्हीं शिक्षकों के बहुत सारे सेशन अटेंड कर चुके थे । फिर से उन्हें पूछा गया, कि अब तीन महीनों बाद उनकी उन शिक्षकों के प्रति क्या राय है ? और आखिरकार दो से पाँच सेकंद के क्लिप के आधार पर बनी राय और तीन महीनों बाद की राय की तूलना की गयी । एमबड़ी और रोझेन्थल को इस तूलना पर यकिन करना असंभव था क्योंकि थिन स्लाइसिंग से आया हुआ निर्णय और तीन महीनों बाद की सोच लगभग समान थी । याने कुछ ही पलों में छात्र जिस निर्णय तक पहुंचे थे, तीन महीनों बाद भी उसी निर्णय की सत्यता प्रस्थापित हुई थी ।

अब सवाल यह था, कि थिन स्लाइसिंग करते समय छात्रों ने ऐसा क्या देखा, जिस पर ‘शिक्षक कैसा है?’ इस पर उन्होंने अपनी राय बनायी । इस पर छात्रों से पूछा गया, कि आपने उन क्लिप्स में ऐसा क्या देखा था, जिससे शिक्षक आपको अच्छा लगेगा या नहीं, यह आपने तय किया? इस पर लगभग सारे छात्रों का एक ही जवाब था, कि हमें तो सिर्फ दो से पाँच सेकंद की क्लिप दिखायी गयी और वह भी बिना किसी आवाज के, इसलिए ज्यादा सोच विचार करने का मौका भी नहीं था । पर इन दो सेकंद में हमने कुछ महसूस किया, जिस पर हमने यह तय किया, कि इस शिक्षक की क्लास कैसी होगी? याने ‘थिन स्लाइसिंग’ हुई थी, पलभर में निर्णय हुआ था, पर यह सब किस प्रकार से हुआ? इसका जवाब छात्रों के पास नहीं था । एक बात तो तय थी, कि उन दो सेकंद में छात्रों का ‘अडॅप्टीव्ह अन्कॉन्शस’ काम कर रहा था । उनके ‘थिन स्लाइसिंग’ या ‘स्नॅप जजमेंट’ या ‘फर्स्ट इम्प्रेशन’ ने उनको निर्णय तक पहुँचाया था और निर्णय भी सटीक था ।

पर एमबड़ी और रोझेन्थल को यह जानना था, कि उन दो सेकंद में हुई ‘थिन स्लाइसिंग’ की प्रक्रिया में छात्रों ने ऐसा क्या देखा था जिससे उनका मस्तिष्क निर्णय लेने की अवस्था तक पहुँच पाया । जैसे-जैसे  रिसर्च आगे बढ़ा, इन दो से पाँच सेकंद के क्लिप की बारीकियाँ स्पष्ट होने लगी । कुछ बहुत ही सूक्ष्म बातें थी, जिनके बूते हर किसी ने पलभर में निर्णय लिया था । उन दो से पाँच सेकंद की क्लिप में छात्रों के मस्तिष्क ने कुछ सूक्ष्म चीजों का निरीक्षण किया था और शायद उसके बारे में उन्हें भी अंदाजा नहीं था, क्योंकि यह सब पलभर में हुआ था, इसी लिए छात्रों ने सिर्फ इतना कहा कि ‘उन्हें कुछ महसूस हुआ’। पर इन दो सेकंद में हुआ क्या था? इन दो सेकंदों में छात्रों के मस्तिष्क ने कुछ सूक्ष्म बातों का बड़ी सटीकता से अवलोकन किया था, जैसे कि शिक्षक के चेहरे के बदलते हुए भाव, आय कॉन्टैक्ट, खुले हाथ, मुस्कुराहट, खड़े होने का ढंग, आयब्रो की हलचल, नीचे देखना, हाथ में जो चीज है, जैसे कि किताब, उसके साथ उनका बर्ताव, इ. और यह निरीक्षण मस्तिष्क ने इतने झट से किया कि छात्रों को भी समझ में नहीं आया, कि उनके दिमाग ने निर्णय लेने के लिए क्या किया? पलभर में मस्तिष्क ने ढेर सारे निरीक्षणों को थिन स्लाइस किया था । याने ‘स्नॅप जजमेंट’ या ‘फर्स्ट इम्प्रेशन’ के कुछ ही पलों में मस्तिष्क ने इतनी सारी जटील बातों का बेहतरीन तरीके से निरीक्षण किया था और उसके बूते एक सटीक निर्णय लिया था ।

इसका मतलब ही यह हुआ, कि हमारे मस्तिष्क के पास एक अद्भूत शक्ति है, हमारा मस्तिष्क कुछ पलों में बहुत ही कम जानकारी होते हुए भी सटीक निर्णय ले सकता है । याने ‘थिन स्लाइसिंग’ की प्रक्रिया के तहत जो निर्णय पलभर में होते हैं, वे भी सही होते हैं । ज्यादातर बार तो ढेर सारी जानकारी के विश्लेषण के बाद, बहुत ज्यादा समय सोच विचार करने के बाद, हम जो निर्णय लेते हैं, उन निर्णयों के मुकाबले थिन स्लाइसिंग द्वारा लिए गए निर्णय ज्यादा सटीक और बेहतर साबित होते हैं । इसका मतलब ही यह हुआ, कि ‘थिन स्लाइसिंग’ बहुत ही आम बात है तथा ‘थिन स्लाइसिंग’ पर भरोसा किया जा सकता है ।

अब सवाल यह है कि बेहतर क्या है, ‘स्टॅट्रेजिक मैनेजमेंट’ या ‘थिन स्लाइसिंग’? ‘स्टॅट्रेजिक मैनेजमेंट’ या ‘थिन स्लाइसिंग’ के इस्तेमाल का सही समय कौनसा है? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल, ‘थिन स्लाइसिंग’ अगर बेहतर प्रक्रिया है, तो बहुत बार हमारे पलभर में लिए हुए फैसले गलत क्यों साबित होते हैं?

अब उपर लिखा हुआ आखरी सवाल फिर से पढ़े । आखरी सवाल का एक जवाब यह है कि बहुत बार ज्यादातर लोग गलत तरीके से और गलत बिंदूओं पर ‘थिन स्लाइसिंग’ करते हैं ।

अगर मस्तिष्क गलत आधारपर थिन स्लाइसिंग करेगा, तो पलभर में लिए हुए निर्णय गलत साबित हो सकते हैं, जैसे कि अगर कार सेल्समन कार शोरूम में प्रवेश करता इन्सान दिखने में कैसा है? या उसका पहनावा कैसा है? इन बिंदूओं के मद्देनजर ‘थिन स्लाइसिंग’ करता है, तो शायद ‘कौन कार खरीद सकता है और कौन नहीं?’ इस विषय में उसका अनुमान गलत साबित हो सकता है, क्योंकि अगर देहात से कोई किसान कार खरीदने शोरूम आता है, तो उसके पोशाख से यह तय करना गलत होगा, कि उसके पास जमीन कितनी होगी, पैसा कितना होगा, या वह कार खरीदने की क्षमता रखता है या नहीं । अगर आप उसके पोशाख से ‘स्नॅप जजमेंट’ या ‘फर्स्ट इम्प्रेशन’ बना लेते हो और वह स्नॅप जजमेंट गलत साबित होता है, तो आप उस ग्राहक को खोते हो और आपका कम से कम पाँच से दस लाख तक का नुकसान होगा । याने अगर हमारा मस्तिष्क गलत बिंदूओं पर ‘थिन स्लाइसिंग’ कर रहा है, तो पलभर में लिए हुए फैसले गलत भी साबित हो सकते हैं और शायद बहुत बार यहीं होता है । अगर कार बेचते समय ‘थिन स्लाइसिंग’ करनी है, तो वह ग्राहक कितना आत्मविश्वास से भरा है या डांवाडौल है? उसे कारों के बारे में सब कुछ पता है, या वह पूरी तरह से अनभिज्ञ है? क्या उसे कंपनी पर भरोसा है, या उसे संशय है? अगर इन बातों पर मस्तिष्क ‘थिन स्लाइसिंग’ करता है, तो सेल्समन ग्राहक को बेहतर तरीके से प्रभावित कर सकता है । याने ‘थिन स्लाइसिंग’ सफल हो यह आपकी इच्छा है, तो किन बिंदुओं पर ‘थिन स्लाइसिंग’ करनी है? इसकी ट्रेनिंग मस्तिष्क को देना जरूरी होता है । फिर से दोहराता हूँ, ‘थिन स्लाइसिंग’ सफल हो ऐसी अगर  आपकी इच्छा है, तो किन बिंदुओं पर ‘थिन स्लाइसिंग’ करनी है? इसकी ट्रेनिंग मस्तिष्क को देना जरूरी होता है ।

अब एक सवाल आपसे पूछता हूँ । थोड़ा थिन स्लाइसिंग करें । स्नॅप जजमेंट ले, ज्यादा सोच विचार मत करें । क्या आप सवाल के लिए तैयार है?

तो सवाल है, क्या मेट्रो सिटीज् को छोड़कर मर्सिडीज बेंझ किसी जिले के छोटे से शहर में अपना शोरूम खोल सकती है? सवाल दोहराता हूँ, क्या मेट्रो सिटीज् को छोड़कर मर्सिडीज बेंझ किसी छोटे से शहर में अपना शोरूम खोल सकती है? शायद झट से जवाब आएगा कि नहीं, बिल्कुल नहीं, असंभव है । इतनी मंहगी कार गांव, कस्बे में रहनेवाले लोग क्यों खरीदेंगे? गांव में जहाँ सड़के ठीक नहीं है, खेतीबाडी होती है, वहाँ मर्सिडीज बेंझ का क्या काम? शायद यहीं सोचा होगा आपने । अगर आपने इस प्रकार से स्नॅप जजमेंट लिया है, तो पिछले उदाहरण में कार सेल्समन पहनावे के आधार पर ‘थिन स्लाइसिंग’ की जो गलती कर रहा है, वही गलती आप दोहरा रहे हैं, क्योंकि महाराष्ट्र के एक छोटासे शहर कोल्हापूर में मर्सिडीज बेंझ का शोरूम है । शायद आपको यकिन नहीं होगा, पर यह शोरूम खुला 2004 में और 2006 आते-आते कोल्हापूर और उसके आसपास के गांवो में 65 मर्सिडीज बेंझ बेची जा चुकी थी ।

इसका मतलब यह हुआ, कि आपने गलत बिंदूओं के आधार पर थिन स्लाइसिंग की, तो ‘थिन स्लाइसिंग’ गलत जा सकती है और बहुत बार जाती भी है । इसीलिए थिन स्लाइसिंग करते समय थोड़ा सजग रहना जरूरी है, क्योंकि ‘थिन स्लाइसिंग’ कुछ ही पलों में होती है, इसी लिए ‘थिन स्लाइसिंग’ पर आधारित निर्णय लेने के बाद थोड़ा सोच विचार करना, थोड़ा समय देना, याने स्टॅट्रेजिक मैनेजमेंट भी जरूरी होता है । अब सबसे महत्वपूर्ण बात, बेहतर निर्णय क्षमता को विकसित करने के लिए स्टॅट्रेजिक मैनेजमेंट तथा थिन स्लाइसिंग का संतुलन होना जरूरी है । फिर से एक बार इस वाक्य पर गौर करें, बेहतर निर्णय क्षमता को विकसित करने के लिए स्टॅट्रेजिक मैनेजमेंट तथा थिन स्लाइसिंग का संतुलन होना जरूरी है । साथ ही साथ ‘थिन स्लाइसिंग’ सही हो इससे ज्यादा वह गलत ना हो, इस पर विचार होना बेहद जरूरी है ।

अब गलत जानेवाले थिन स्लाइसिंग पर कुछ सवालों के साथ आपको छोड़ जाता हूँ, थिन स्लाइसिंग अगर बेहतर प्रक्रिया है, तो बहुत बार हमारे पलभर में लिए हुए फैसले गलत क्यों साबित होते हैं? जब थिन स्लाइसिंग गलत जाती है, तो क्या होता है? किस आधार पर हमारा मस्तिष्क ‘थिन स्लाइसिंग’ करता है?

अगले ब्लॉग में इन सवालों के जवाब ढूंढते हैं । तब तक के लए ‘एन्जॉय युवर लाईफ एंड लिव्ह विथ पॅशन !’